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योगी । भाग ३ (एक रात)

योगी एक रात
योगी एक रात


...हर दिन की एक जैसी कहानी एक रात यह घटना एक समय या एक इंसान की नहीं है बल्कि, इसके साथ हर समय और हर इंसान जुड़ा हुआ है।


       अमबस्या की काली रात। पहाड़ के ऊपर पेड़ के नीचे हाथ में पिस्तौल लिए हुए एक आदमी बैठा हुआ हे। उसके आखो से आँसू गिर रहा हैं। वह कुछ बोलने की कोशिश करता हे लेकिन बोल नहीं पता। वह छटपटाने लगता हे। गुस्से में उठ कर जोड़ से छिलता हैं। फिर धीरे धीरे घुटनों के बल गिर जाता हैं और अपने सामने पड़ी हुवी दो लाशो को देखता है। वह बोखला जाता है; अपने हाथ में रखी हुयी पिस्तौल से अपने सर मैं गोली मारने की कोशिश करता हैं। लेकिन गोली चला नही पता। बार बार कोशिश करने पर भी वो अपने उँगली से ट्रिगर दबा नही पता। मजबुर होकर वह चिकने लगता है, रोने लगता है और उसके मुँह से जोड़ से एक अवाज निकलता है "आशा"

जिस आशा को वह दिलोजान से चाहता था, आज वह उसके साथ नही हैं। जिस आशा की हँसी उसके कानों में गूंजती रहती थी; आज उसी आशा की चीख उसके कानों में गूंज रहा है। जिस आशा को वह दुल्हन बना कर घर लाया था उस आशा को वह श्मशान तक भी नही ले जा पाया।

उस अमबस्या की रात, उसके मुंह से सिर्फ आशा का नाम ही नही निकला था बल्कि और एक शब्द भी निकला था "क्यों" उस दो शब्द में मानो हजारो तकलीफे छुपा हुआ था, पत्थर को भी पिघला देने वाली दर्द छुपा हुआ था।

लोग गर्व से कहते है की हम इंसान है लेकिन इंसान भी तो एक जानवर का ही नाम है। जानवरों के स्वभाव को इंसान कैसे मिटाएगा। कैसे अपने ऊपर काबू लाएगा। जिस तरह भूखा जानवर हड्डियों को चाट चाट कर खा जाता है ठीक उसी प्रकार लोभी इंसान दूसरों की खुसीओ कोह चाट चाट कर खा जाता है। बस मौका चाहिए। अपने लालश को पूरा करने के लिए इन भेड़ियो को बस मौका चाहिए। यही मौका दिया था धर्म-जाति के युद्ध ने। भेड़िये यह नही देखते की कोन किस धर्म का है या किस जाति का, वह तो सिर्फ अपना मतलब देखता है। जहाँ मतलब दिखा उहा चाटना शुरु। इस धर्म जाति के युद्ध ने ही उन 2 भेड़ियो को मौका दिया था उस पति और आशा के खुशियो को चाटने का। वह घटना भी अमबस्या के रात को ही घटा था। उस रात सारो तरफ अफरा तफरी का माहौल था। कोई धर्म के लिए लड़ रहा है तोह कोई जाति के लिए। एक ही मातृभूमि में पैदा हुए लोग एक दूसरे को काट रहे थे। लोगो के मन मे हिंसा भर चुका था। किसी को कुछ नजर नही रहा था;  मर्द न औरत,  बचा  बूढ़ा। सब मर रहे थे मार रहे थे। इसी बीच उन 2 लोगो ने उस आदमी की खुशियां लूटने का फैसला किया। जब सारो तरफ अफरा तफरी था तभी उन लोगो ने पति के घर मे घुस कर उसके खुसीओ को लूटना शुरू कर दिया। उन लोगो ने पति को मार मार कर बेबश कर दिया था। वह कुछ नही कर पा रहा था सिवाय अपनी खुशियों को लूटते हुए देखने के अलावा। आशा सीखती रही चिल्लाती रही लेकिन उन भेड़ियों ने उस पर थोड़ा भी दया नहीं दिखाई। आशा जितना सीखती वह लोग उतना ही उसकी इज्जत को लूटते। जितना चिल्लाती उतना ही उसे पीटते। और अंत मे उसे जला दिया। उस आग में वह पति भी जल कर राख हो जाता अगर पुलिस ना आता।

आग... आग... जब उस पति के कानों में उस रात आग में जलती हुवी अपनी पत्नी की आवाज सुनाई पड़ी तब वह बोखला गया। वह नीचे की ओर दौड़ने लगा। अपने गाड़ी का दरबज्जा खोल कर पेट्रोल का डिब्बा निकाल लिया और उपर की तरफ आकर उस लाके सामने खड़ा हो गया। उसने धीरे धीरे सारा पेट्रोल लाश के ऊपर गिरा दिया। थोड़ा समय उस लाश को घूरता रहा। उसके आखो से आँसू टपक रहा था। उसका मुंह गुस्से से लाल हो रहा था। वह उठ खड़ा हुआ। अपने जेब से माचिस निकाल लिया। माचिस जलाया और न दो भेड़ियों के उपर फेक दिया। वह दोनों भेड़ियां जलने लगा, जिस तरह आशा जली थी। पति धीरे धीरे पीछे की तरफ आता गया। और अंत मे जब पहाड़ की चोटी पोहचा तो उसे एक आवाज सुनाई पड़ा। उसने पीछे मुड़ कर देखा। आशा दोनो हाथ फैलाये उसे गले लगाना चाहती थी। उसने भी अपने दोनों हाथ फैला दिए और जैसेही उसने आशा की तरफ कदम बढ़ाया वह पहाड़ से गिर गया। तभी योगी चोक कर उठ जाता है। इधर उधर देखता है। कोई नही है। उसे याद आता है वह तो पार्क में राहुल से मिलने आया थाकब बेंच में नींद आया गया उसे मालूम ही नही चला।वह मन ही मन कहता है की बहुत Emotional Story था। फिर उसके मन मे खयाल आता है और वह मन ही मन सोचता है, "भगवान ने शायद जानवरों को इसलिए इंसानों जैसा दिमाग नही दिया ताकि वह अपने आप को श्रेष्ठ जीव कहके श्रेष्ठता का अपमान ना कर सके। कितना विचित्र है कुछ इंसान। इंसानियत का ज्ञान होते हुवे भी जानवर बन जाता। अपने मकसद के लिए दूसरों की खुसीओ को कुचाल देता है। किसी सीज का डर नहीं। ना प्रशा का ना कानून का। क्योंकि वेह जानते है उन्हें कुछ नही होगा। उनके धर्म के लोग उन्हें कुछ नहीं होने देंगे। उनके जाति के लोग उन्हें कुछ नहीं होने देंगे। उनके समाज के लोग उन्हें कुछ नही होने देंगे। कोई ना कोई तो आएगा उन्हें बचाने। क्योंकि अगर वेह फसे तो धर्म बदनाम होगा, जाती बदनाम होगा, समाज बदनाम होगा। हर चीज जो उनसे जुड़ा हुआ है वह सब बदनाम होगा। इसिलिए तो बुरे लोग निडर होकर घूमते हैं। जब तक लोग एक होकर बुरे इंसानो को धर्म से, जाती से, समाज से निकाल नही देते तबतक एक सुव्यवस्थित समाज का भ्रम अपने मन से निकाल कर कचरेके डिब्बे में फेंक देना चाहिए।"





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।। कहानी पढ़ने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।।