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मुला गाभरु | एक योद्धा नारी | Mula Gabharu | A lady Warrior in hindi

मुला गाभरु | एक योद्धा नारी | Mula Gabharu | A lady Warrior in hindi
मुला गाभरु | एक योद्धा  नारी | Mula Gabharu | A lady Warrior in hindi


इतिहास बड़ा ही बिचित्र हैंइसमे कई ऐसे कहानियां दफ़न हैं जिस के बारे में बहुत ही कम लोगों को मालूम होइसी इतिहास मे ऐसे कई नारी कि भी कहानी हैं जिसने अपने राज्य, अपने देश, अपने मातृभूमि के लिए अपना सब कुछ त्याग दियाइन्ही नारियो में एक नारी थी मुला गाभरु  जिसने अपने पति के लिए, अपने मातृभूमि के लिए मुग़लो के साथ जंग लड़ीजिसने असम के लोगो को हाथ मे हेंगडंग (अहोम तलवार) लेकर मुग़लो के साथ युद्ध लड़ने के लिए आह्वान किया थायह उस नारी की कहानी हैं जिसने चार दिनों तक मुग़लो का संहार किया थायह वह वीर मुला गाभरु की कहानी हैं


प्रारंभिक बातें

मुला गाभरु जी को अहोम में नंग मो-ला नाम से बुलाया जाता हैंउनके जन्म के वारे या उनके जीवनी की बारे में निचित रूप कह पाना थोड़ा मुश्किल होगा क्योंकि इतिहास में मुला गाभरु जी के बारे में कम तथ्य मजूद हैंजो प्रमाण करता हैं कि इतिहासकारो ने नारी के इतिहास के ऊपर उतना प्राधान्य नही दिया थामजुदा कुछ तथ्य और जानकारी के अनुसार मे अपनी बात रखने की कोशिश करूंगाजो जानकारी असम के बड़े विद्वान और Edward Gait जैसे इतिहास के लेखों को ने दी हैंइतना तय है कि मुला गाभरु वह वीर औरात थे जिसे ना तो गुलामी बर्दाश्त थी और ना ही अपनी मातृभूमि पर मुग़लो का आगमन

मुला गाभरु के जीवन के कुछ बातें

मुला गाभोरु जी के पिता का नाम चॉअफा चुपीमफार थामुला गाभरु जी के पति थे अहोम के चाओ फराचेंगमुंगवे अहोम साम्राज्य के बरगोहाई थेइसलिए उन्हें चाओ फराचेंगमुंग बरगोहाई कहा जाता थादोनो ही अपने मातृभूमि से बहुत प्यार करते थेदोनो ही यह मानते थे कि जीवन से बढ़कर होता हैं स्वाधीनता और देश प्रेमदोनो ने इस बात को अपने कार्य से साबित भी किया था

नंग मो-ला जी को गाभरु ( कुँवारी) कहने का वजह

बहुत लोग का सवाल रहता हैं कि नंग जी का उपाधि गाभरु (कुँवारी) कैसे हुआदरअसल अहोम के बड़े अधिकारी के पत्नी को गाभरु कहा जाता थाकुछ लोग उन्हें "गाभरु देउ" कह कर भी बुलाते थेनंग जो कि बरगोहाई की पत्नी थी इसीलिए उन्हें भी नंग मो-ला गाभरु या मुला गाभरु कह कर बुलाया जाता था

आहोम और मुग़लो का युद्ध

उस समय अहोम के स्वर्गदेउ यानी राजा थे चुहुंमुंग ( हिन्दू नाम स्वर्गनारायन) 1528 से 1532 के बीच मुग़ल सैनिको ने असम में दो बार आक्रमण (मुग़लो द्वारा पंचम और छठी वार) किया थादोनो ही आक्रमण मुग़लो ने तुरबाक खान के नेतृत्व में हुआ थास्वर्गनारायन के समय यानी मुग़लो ने पंचम बार असम आक्रमण कियाआक्रमण में असम के कई सैनिक मारे गए थेउस समय मुग़ल बहुत शाक्तिशाली भी थे, लेकिन असम के वीरो और अपने मातृभूमि के लिए सपर्पित लोगो से ज्यादा शाक्तिशाली नही थेमुग़लो के साथ असम के सैनिको ने जमकर युद्ध लड़ा कई मुग़ल सैनिक मारे गए, साथ मे कई अहोम सैनिक भी मारे गए थेअहोम के राजमंत्री खुनलुंग बरगोहाई के साथ कई सेनापति भी मारे गए थेअहोम धीरे धीरे कमजोर पड़ रहा थातब यह बात फराचेंगमुंग ने अपने पत्नी मुला को बताया थातब मुला गाभरु ने अपने पति को युद्ध मे जाकर मातृभूमि की रक्षा करने कहा थाकुछ लेखको के अनुसार मुला गाभरु जी भी युद्ध मे जाना चाहती थी लेकिन फराचेंगमुंग ने तब मना कर दिया थाअपनी पत्नी की बाते सुनकर फराचेंगमुंग ने कहा था, "तुम्हारी जैसी पत्नी जिसके पास हो उसे किसी चीज का भय नहीमें कल ही युद्ध मे जा रहा हुमृत्यु और जीवन से भी कई बारकर होता हैं स्वाधीनता और देशप्रेम" यह कहकर फराचेंगमुंग यद्ध के लिए निकल गयाफराचेंगमुंग ने बारे वीरता से युद्ध लड़ा लेकिन अंत मे तुरबाक खान के हाथों सहीद हो गया

अपने पति की मौत की ख़बर सुनकर मुला गाभरु जी का कलेजा टूट गया था। वह शोक में चली गयी थी। उनके ऊपर मानसिक विपत्ति गयी थीअंत में उन्होंने अपने पति के मौत का, अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए जंग में जाने का ऐलान कियासभी ने उन्हें मना किया थाउनकी सहेली महिला जयंती ने भी उन्हें मना किया थासभी ने कहा था, "जंग औरतों के लिए नही हैं" लेकिन मुला गाभरु फैसला कर चुकी थी" अब फैसले की घड़ी थी, अब युद्ध का एलान होना था

पद्मनाथ गोहाई बरूवा के अनुसार 1527 में फराचेंगमुंग जी शहीद हु थेउनके मौत के 5 साल बाद 1532 में तुरबाक खान ने दुवारा (यानी मुग़लो ने 6 बार) असम आक्रमण किया थाइसी आक्रमण में मुला गाभरु जी के साथ असम के आरोतो ने अपनी वीरता दिखाई थी

मुला गाभरु एक योद्धा नारी

पति के मौत के बात इस वीरांगना ने युद्ध में जाने का फैसला कर लियाइसके बात ही इस वीरांगना की प्रशिक्षण शुरू हो गयाअपने सहेली को युद्ध की तैय्यारी करते देख महिला जयंती, पमिला और ललिता सहित कई सहेलियों ने मुला गाभरु जी का साथ दियामुला गाभरु जी ने असम के लोगो को हाथ मे हेंगडंग लेकर युद्ध मे आने का आह्वान किया थाउन के आह्वान को सुनकर ना सिर्फ काई लोग युद्ध मे जाने का फैसला किया बल्कि कई ओराते भी युद्ध मे जाने के लिए तैय्यार हो गए थेअंत मे जंग की घड़ी आय गयीतुरबाक खान असम हाथोयाने के इरादे से और भी शक्तिशाली सेना लेकर असम आयालेकिन इस बार उसके सामने था मातृभूमि असम की बेटी मुला गाभरुजो तुरबाक खान और उसके सैनिको का संहार करने के लिए हाथ मे हेंगडंग लिए हुई थीएक भीषण युद्ध हुआमुला गाभरु जी ने मुग़लो के कई सैनिको का संहार कियाउनके साथ ही उनके सहलियो ने भी मुग़ल सैनिको को असम के वीरता का परिचय दिया थाअसम के ऊपर मंडरा रहे काले बादलों को मुला गाभरु के सैनिक साफ करने में लग गए थेतीन दिनों तक मुग़लो के सैनिको का संहार करने के बाद चौथे दिन मुला गाभरु का सामना हुए तुरबाक खान सेअपने पति के हत्यारे को देख मुला गाभरु बाखला गयी और एक शेरनी की तरह उसके ऊपर झपट्टा मारादोनो के बीच भयंकर युद्ध हुआतुरबाक खान जैसे एक प्रशिक्षित युद्धा को मुला गाभरु ने एक औरत कि ताकत का अहसास दिलायामुला गाभरु बड़ी बीरता से ड़ी लेकिन तुरबाक खान भी एक युद्धा थाअंत मे इस वीर वीरांगना की मौत हो गयी

मुला गाभरु के मृत्यु के बाद

मुला गाभरु के मृत्यु ने असम के सैनिको के अंदर दोगुना प्रेरणा जगायाऔर दिकराई मुखर युद्ध मे कनाचेंग बारपत्र गोहाई के नेतृत्व में असम के सैनिको ने मुग़लो को परास्त किया और तुरबाक खान को हत्या किया

इसके बात भी मुग़लों ने कई बार आसाम आक्रमण किया और अंत में गदाघर सिंह के हाथो परास्थ होने बात बात मुग़लो ने असम आक्रमण करना छोड़ दिया।

मुला गाभरु दिवस

अस के लोग प्रति वर्ष के अंग्रेजी तारीख के May 29  के दिन मुला गाभरु दिवस का पालन करते आय हैं

अंत में कुछ बातें  

मुला गाभरू ने अपनी वीरता दिखाकर असम के लोगों में प्रेरणा जगाया था।  मुला गाभरू एक योद्धा नारी थी।  मुग़ल ने अपनी शक्ति विस्तार के लिए असम के साथ युद्ध किया।  उस युद्ध में कईओ ने अपने जीवन और परिवार खोए। बंदूक या तलवार से लड़ा गया युद्ध हमेशा एक नए युद्घ को ही जन्म देता है। यह युद्ध कभी भी किसी समस्या का हल नहीं हो सकता। युद्ध सिर्फ समस्या को बढ़ता हैं। अगर लोगो को युद्ध करना हैं तो अपने अंदर के बुराइयों से युद्ध करना चाहिए।  ताकि समाज में एकता का स्थापना हो सके। ताकि कभी कोई मासूम को योद्धा  बनाना न पड़े। मुला गाभरू जैसी औरत को योद्धा नारी न बनना पड़े जिसने अपने पति, अपने परिवार, और अंत में अपने जीवन को भी खो दिया।

एकता जीवन देती है और युद्ध जीवन लेता है

।। लेख पढ़ने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।।

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