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योगी । भाग २ (बॉस यात्रा)

योगी बॉस यात्रा
योगी बॉस यात्रा
योगी झट से अपनी आँखें खोलता है। उसे अहसास होता हैं की उह सपना देखा रहा था। तभी उसके कानों में माँ की आवाज सुनाई देता है, "योगी १० बज गए। दिन भर क्या सोते ही रहोगें?" माँ की बाते सुनकर योगी ने कहा, "हा, उठ रहा हु।" योगी का सर थोड़ा भारी लग रहा था। उसने इतने सारे सपने देख लिए थे की उसे ठीक से याद ही नही की उसने क्या क्या देखा। आज उठने में उसे बहुत देरी हो गेया। वह सोचने लगा उसने कभी इसे पहले इतनी देरी से उठा भी था या नहीं। उसे कुछ याद नही आता। वह बिस्तर से उठ कर मुँह हाथ धो कर बहार निकाल जाता हैं। काल उसके दोस्त राहुल ने उसे आज १२ बजे से पहले श्रद्धांजलि पार्क में आने के लिए कहा था। योगी माँ से पैसे लेकर बॉस में चढ़ जाता है।
आज उसका शरीर बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा है। इसका असली कारण वह सपना था। सपनों के अंदर इतना सपना देख सुका था की उसका सारा शरीर जंझोरने लगा था। उपर से सुबह देरी से उठा वह अलग। इतना सोने के बाद भी, मानो उसका नींद पूरा हुआ ही ना हों। उसे नींद आ रहा था। इसीलिए बस में चढ़ ने के बाद उसने सभी सीटों में अपने तीखी नजरें घुमाया। लेकिन कही कोई सीट खाली ना था। वह मायूस हो गया और चुप चाप खिड़की के बाहर देखने लगा। इतने में कंडक्टर भाड़ा मांगने आता है। पहले वह कंडक्टर की तरफ देखता ही नहीं। वह भाड़ा ना देने का फार्मूला अपनाता है। थोड़ा गुस्से वाला चेहरा बनाओ, कंडक्टर की तरफ देखो मत, देखो भी तो इस तरह देखो की तुमने भाड़ा दिया हैंमतलब एक आत्मविस्वास चेहरे पे लाओ; स्से कंडेक्टर भर्मित हो जाएगा और अगर फिर भी भाड़ा मांगे तो थोड़ा गुस्से से कंडक्टर की तरफ देखों। और उसके बाद भी अगर भाड़ा मांगे तो चुप चाप भाड़ा दे दो। योगी ने भी यही किया। लेकिन उसके बगल वाला बज गया। उसका योजना काम कर गया। योगी ने मन ही मन सोचा अच्छा ही हुआ उसने भाड़ा दे दिया वरना उस कंडेक्टर को 15 रुपए का नुकसान हो जाता। मैं खुद लोगो को मतलबी कहता हूँ और जब बात अपने मे आता है तब खुद मतलबी बन जाता हूं। यह मजबूरियां लोगो को यह सब करवाता है। वरना शायद सब तो मोहब्बत से रहना चाहता है। लेकिन अपने हिसाब से।
योगी की नजर खिड़की के पास बैठे आदमी के ऊपर गिरता है। मानो उस आदमी की मंजिल गया हो। वह धोरे से उठता है। उसी समय एक दूसरे आदमी का भी नजर उस सीट में पड़ता है। योगी समाज जाता ै की वह आदमी भी वह सीट हथियाने के फिराक में है। लेकिन योगी उसके मकसद को कामयाब होने नही देगा। आज योगी का शरीर बहुत खराब लग रहा है उसे वह सीट किसी भी हालात में चाहिए। इसीलिए जैसे ही वह आदमी निकलता है, योगी तुरंत ही उस सीट में बैठ जाता है। उसे एक संतुष्टि मिलता हैं। वह अभी हवा खाते हुवे जा सकेगा। लेकिन तभी उसका नजर बगल में बैठी एक लड़की पड़ पड़ता है। उस लड़की के मांग में सिंदूर था। वह लड़की मायुस हो जाती है। वो आदमी भी मायुस हो जाता है। दोनों एक दूसरे को देखता है। फिर वह आदमी मुस्कुरा देता है। योगी समाज जाता है की यह दोनों पति पत्नी है। वह मन ही मन अपने आपको कोसने लगता है। उसके दोनों मन उसे अपने अपने तरीके से समझाने लगता है,
अच्छा: लालश ने तुम्हे भी अन्धा बना दिया।
बुरा: लेकिन उसका भी तो तबियत ठीक नही है।
अच्छा: लेकिन श्रधांजलि है ही कितना दूर? ३५(35)-५०(40) मिनिट का तो रास्ता है। २६ (26) साल लड़का होकर इतना दूर भी खड़ा होकर नही जा सकता। लानत है। दोनों पति पत्नी हँसी खुसी बैठ कर कुछ बाते करत लेकिन टेड़ी बजे से अब वह दोनों भी अच्छे से बात नहीं कर पायेगा।
बुरा: लेकिन तेरी तकलीफ का किया?
अच्छा: अब्बे बीमारी मतलबी आदमी थू हे टेरेपी। अब से किसीको नसीहत मत देना। ३५ मिनिट खड़ा नही हो सकता है। लानत है तुमपे। थू।"
दोनो वकीलो की दलीलें सुनने के बाद, अंत मे योगी ने फैसला अच्छे मन को तरफ दिया। योगी उठ कर उस पति को अपने सीट पर बैठने को कहता है। पहले तो वह आदमी माना करता है लेकिन बाद में मान जाता है। वह आदमी पत्नी को खिड़की के सामने बिठाकर खुद पत्नी की जगह बेठ जाता है। योगी के मुंह मे एक मुस्कुराहआता है। उसको गर्व महसूस होता है। अपना शरीर खराब होने के वाबजूद भी उसने दुसरो की खुसी के बारे में सोचा। उसने इधर उधर देखा दो तीन लोग उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा रहे थे। जैसी की मानो वह कह रहे हो, "तुमने बहुत अच्छा काम किया।" योगी मन ही मन खुस हो जाता है। लेकिन तभी उसकी नजर उसके नजदीक खड़े दो आदमी के ऊपर गिरता है। वह लोग नीचे कुछ झकने की कोशिश कर रहा था योगी समाज जाता है वह लोग उस पत्नी की छाती देखने की कोशिश कर रहा है। वह पत्नी काफी सुंदर थी। हर सुंदर चीज इंसानो को आकर्षण करता ही है। उसे पाने की कोशिश करता ही है। अगर एक भूखा इंसान में इंसानियत ना हो तो वह भूख मिटाने के लिए किसी भी हद तक गिर सकता है। अब इंसान में भूख किसी भी चीज की हो सकता है। बॉस में खड़े इन दो इंसानो को तो उस लड़की की छाती देखने का भूख था। वह लोग अपने मन के उत्पीरण को नियंत्रण नही कर पा हे थे वह लोग अपने मन के गुलाम बन रहे थे। उन लोगो को देख कर योगी को गुस्सा आया लेकिन उन लोगों का मुंह देख कर योगी मन ही मन मुस्कुराया भी। छाती देखने ना पाकर उन लोगो का मुंह सुख गया था। तभी उन दोनों की नजर योगी उपर गिरा, वह दोनों डर या और ऐसे व्यवहार करने लगे जैसे उन लोगों ने कुछ किया ही ना हो। योगी उनलोगों को कुछ कहने ही वाला था कि कंडक्टर के मुंह से श्रद्धांजलि का नाम सुना। योगी ने बाहर देखा तो बॉस श्रद्धांजलि पहुँच चुका थावह तुरंक उतार गया। उतर ने के बाद अचानक उसका नजर उन दोनों आदमी के उपर गिड़ा। उन दोनों ने उस सीट को घेर लिया था। योगी समझ गया वह लोग उस पत्नी को उपर से निचे तक अच्छे से स्कैन करके ही छोड़ेगा। अब तो बॉस में कोई है भी नहीं जो उन्हें रोकेगा। बॉस के बाकी लोग तो अपने अपने जीवन के समस्याओ से घिरा हुआ है। अब और एक समस्या को क्यो अपने कंधों के ऊपर लेगा।
बॉस से यात्रा खतम करने के बाद योगी श्रद्धांजलि के अंदर आता है। अभी १२ बजे है। राहुल अभी तक नही आया। योगी छाओ में जा कर बैठ जाता है।  






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।। कहानी पढ़ने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।।