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वीर चिलाराय । भारत माँ के वीर पुत्र


वीर चिलाराय । भारत के वीर पुत्र
वीर चिलाराय । भारत के वीर पुत्र 

चील के जैसा उड़ता था और चील के जेसा झपट्टा मरता था दुस्मानो के गर्दन पर। वही था वीर चिलाराय। चील का राजा।
हैमान्त कुमार भराली (एहजार बचरर एशो गराकी असमीया)

भारत वीर असम संतान वीर चिलाराय का जन्म 1510 (अनुमानित) मे असम मे हुआ था। विश्व सिंह(कोच राजवंश का प्रतिष्ठाता) का बेटा और नरनारायण का भाई चिलाराय केवल एक पराक्रमी सेनापति ही नहीं था बल्कि वह एक विद्वान भी था। संस्कृत भाषा का ज्ञाता था। संस्कृत भाषा मे ग्रन्थो की रचनाएँ भी किया था।

उनका असली नाम सुक्लध्वाज है। जन्म मे ही उन्है श्वेत रोग ने जकड़ लिया था। इसिलिये राजा विश्व सिंह ने उनका यह नाम रखा।बाद में वह वीर चिलाराय के नाम से प्रसिद्ध हुआ। कोच राजवंश हिन्दु घर्मावलंबी लोग थे। भगवान के प्रति अपार श्रद्धा था। बहुत सारे मन्दिरों का निर्माण तथा मरम्मत भी करवाई था। विश्व सिंह ने नरनारायण (उनका असली नाम मल्लदेव था) ओर चिलाराय को ज्ञान अर्जन के लिये काशी के ब्रह्मनन्द के पास भैजा। लेकिन इस बीच विश्व सिंह का 1540 मे देहान्त हो जाता हैं ओर बड़े भाई नरसिंह सिंहासन को हथिया लेता है। अपनी शिक्षा समाप्त करने के बाद जब नरानारयण ने नरसिंह को सिंहासन मे देखा तो दोनो भाइयों ने युध्द की घोषणा कर दिया। इस युद्ध मे दोनों भाईयो को विजय प्राप्त हूई ओर राजा बना नरनारायण ओर वीर सिलारय बना सेनापति। यह नरनारायण ओर चिलाराय द्वारा लड़ा गया पहला युद्ध था। नरनारायण और चिलाराय का रिस्ता आप राम और लक्ष्मणसे भी तुलना कर सकते है। दोनो भाइयों मे बहुत प्रेम और एक दुसरे के प्रति बहुत श्रद्धा था।

वीर चिलाराय जी का आहोम के साथ युद्ध

नरनारायण राजा बन्ने के बाद आहोम के साथ शत्रुता ओर ज्यादा बड़ जाता है। हलाकि विश्व सिंह के समय भी आहोम के साथ कोच राजवंश के रिस्ते उतने अच्छे नेहीं थे। लेकिन कुछ इतिहासकारो के अनुसार शुरु मे आहोम और कोच वंश का सम्बन्ध अच्छा था। विश्व सिंह नें 1537 मे आहोम राजा चुहुंमँ के साथ मित्रता स्थापन किया था। लेकिन धीरे धीरे सम्बन्ध मे दरार आने लगा और नरनारायण राजा बनने के बाद सम्बन्ध टुट गया।

आहोम अपना दबदबा बनाई हुये था। चिलाराय और नरनारायण पहले होम राज्य आक्रमण करना नही चाहता था। लेकिन बहुत सारे एसे कारण बने कि बाद में आहोम राज्य के साथ युद्ध कि नौबात आ गयी। उनमें से सबसे प्रचलिक कारण यह है कि 1543 मे आहोम राजा चुक्लेंनमुँ के सैनिकोनें ब्राह्मपुत्र के उत्तर दिशा मे पहरा दे रहे सैनिक को मार कर भगा दिया। दुसरा कारण यह था कि 1543 मै कोच राजवंश के तीन राजकुमार दीपनारायण, हेमचन्द्र, रामचन्द्र और एक राजकुमारी लीलावती अपने सुरक्षाबलों के साथ आहोम शासन के अधीन ब्रह्मकुण्ड मे घुमने के लिए गये हुये थे। तभी आहोम सैनिको ने आक्रमण कर के राजकुमार दीपनारायण का हत्या कर दिया और राजकुमारी लीलावती का अपहरण कर लिया। फलस्वरुप हेमचन्द्र और रामचन्द्र ने आहोम के उपर आक्रमण कर, आहोम राज्य के चाँगिनीमुख को हथिया लिया। इन सब कारणो से कोच और आहोम के रिस्तो मे तनाव बहुत बढ़ जाता है। जिस के फलस्वारुप 1546 मे कोच और आहोम के बीच युद्ध चिढ़ जाता है। उस युध्द मे चिलाराय के पराक्रम के सामने आहोम सैनिक कमजोर परने लगता है और नारायणपुर तक भागने के लिए मजबुर हो जाता है। इस युद्ध के दौरान चिलाराय ने गौसाइकमल को कोच राज्य से नारायणपुर तक 350 माइल लम्बी बांघ निर्माण का आदेश दिया था। जिसे गैसाइकमल ने बरेही निष्ठा पूर्वक पुरा किया। आहोम के हार का यह एक बड़ा कारण था। लेकिन आहोम भी इतनी असानी से हार मन्ने वालो मे से नही थें। थे तो मातृभुमि असम के ही संतान। उन्होने भी बदला लेने का ठान लिया और अचानक हमला करणे का फैसला किया। जिसके के बारेमें चिलाराय ने सोचा भी नहीं था। फलस्वारुप पिछलापार मे आहोम ने अचानक हमला किया और कोच को हर का समना करना पड़ा। इस हार का और कारण खाने का अभाव भी था। यह हार चिलाराय के जेहन मे घुस सुका था। जो 1562 ओर 1563 मे निकला।

भारत के वीर पुत्र चिलाराय जी का विजय यात्रा

1552 मे आहोम राजा चुक्लेंनमुँ के मृत्यु के बाद छुखामाफा या खोड़ा राजा (लंगड़ा राजा) आहोम के राजा बनते है। नरनारायण सब मतभेदों को भुलाकर 1555 मे आहोम के समने मित्रता का प्रस्तव रखता है। लेकिन उस प्रस्तव को छुखामफा सिरे से खारिज कर देता है। फलस्वरुप चिलाराय 1562 और 1563 मे दो बार आहोम आक्रमण कर राजधानी गड़गाव मे विजय ध्वज लहराता है। यहा से ही चिलाराय का बिजय यात्रा शुरु होता है। आहोम को पराजित कर के चिलाराय कचारी राजा को भी अपने अधीन करता है। साथ मे डिमरीया राजा पित्नेश्वरको को अपना अधीन करता है। इसके बाद जयन्तीया और त्रिपुरा राज्य आक्रमण कर राजा की हत्या कर दैता है। दुसरी तरफ मणिपुर का राजा युद्ध से बचने कै लिये सन्धी का पेश कश करता है। इस तरह चिलाराय इन सब राज्य के साथ ही डिमुरु, सिलेत, खैराम, गारो आदि इलाको मै भी अपना जीत का परचम लहरा कर उत्तर पूर्व के प्राय हिँसो मे अपना दबदबा बनता है। कचारी राजा सालाना 70 हजार शुल्क, एक हजार सोने के महर और 60 हाथी देने के लिये विवश हो जाता है। मणिपुर के राजा भी सालाना 20 हजार शुल्क, 300 सोने के महर 10 हाथी देने के लिये राजी हो जाता है। इस तरह कोच राजवंश सम्रद्धीशाली वंश बन जाता है। किसी चीज कि कमी नहीं होती।

उत्तर-पुर्व के प्राय हिस्सों में अपना परचम लहराने के बाद चिलाराय ने गौड़ राज्य आक्रमण के बारे में सोचना शुरु कर दिया। लेकिन यहा बहुत सारे इतिहासकारो का अलग अलग मत है। पार्ची ग्रन्थों के अनुसार चिलाराय कभी भी गौड़ राज्य आक्रमण करना नही चहता था। गौड़ राजा ने ही कोच राजवंश पर हमला किया था – मुसलिम धर्म के प्रचार के लिये। सुलाइमान खान कर्रानी के सेनापति कालापहाड़ और चिलाराय के बीस भीषण युद्घ होता है। लगभग दस दिन के युद्ध में चिलाराय वीरता पुर्वक गौड़ के कई सैनिको को मर गिरता है। लेकिन अस्त्र-शस्त्र के अभाव और खाने का भराल खत्म हो जाने के कारण चिलाराय मुसीबत मे गिर जाता है।  अन्त में चिलाराय को हर का मुह देखना पड़ता है और उन्हे बन्दी बना लिया जाता है। युद्ध मे विजय प्राप्ती के बाद कालापहाड़ ने असम मे बिनाश लीला शुरु कर दिया। विभिन्न मन्दिर तोड़ दाले। देवी-देवताओ के मूर्तियां नष्ट कर दाले। कामाख्य मन्दिर को भी बहुत नुकसान पहुचाया।

कारापहाड़ लेकिन जन्म से ही मुसलमान नही था। उसका असली नाम राजीव लोचन रोय था। उसने मुसलमान धर्म को अपना कर गौड़ राज्य का सेनापति बना।

इधार चिलाराय को कारागार मुक्त कर दिया। इसका असली वजह निश्चित रुप से कह पाना मुस्किल है। लेकिन दो कारण प्रमुख है। पहला गोड़ राजा के माँ को साप ने दश लीया था। जब वैद्योंने उसे ठीक नही कर पाया तब चिलाराय को बुलाया गया। क्योकि चिलाराय कोचिकित्सा विद्या के बारेमे अच्छा खसा ज्ञान था। चिलाराय ने राजा के माँ को स्वास्त कर दिया और उसके बिना पर उन्है कारागार से मुक्त कर दिया। और दुसरा कारण जो सबसे प्रचलित है, वह यह है कि पाठान वाजिर लोदि खाँन के परामर्श पर सुलाइमान कर्रानी ने चिलाराय को छोरने का निर्देश दिया। क्योकि उस समय गौड़ पर मौगल का आक्रमण प्राय निश्चित हो चुका था। इसिलिये चिलाराय को छोलकर नरनारायण को खुस करना चहता था। ताकि मौगलो के साथ युद्ध मे नरनारायण से मदद मिल सकें। लेकिन कालापहाड़ द्वारा असम को किया गया अत्याचार चिलाराय नही भुला था।

पहले दोनो भाईयो ने मन्दिरों का निर्माण और मरम्मत का काम शुरु किया। कामाख्या मन्दिर निर्माण के बाद चिलाराय ने गौड़ राज्य आक्रमण के बारे मे सोचा। लेकिन इस बार पुरी तैय्यारी के साथ। इसिलिये मौगलो के साथ सम्बन्ध अच्छा करने मे लग गये। ताकि गौड़ के सुलतान को आसानी से हरा सके। नरनारायण ने दिल्ली के राजसभा मे बिभिन्न उपहारो के साथ ही अपना एक दुत भी भेजा।

आकवर और नरनारायण के बीच मित्रता हुआ और यह निश्तित किया गया की दोनो सेना मिलकर गौड़ राज्य आक्रमण करेगा। चिलाराय उत्तर-पुर्व दिशा से और मौगल के सेनापति मानसिंह नेंपश्चिम दिशा से गौड़ राज्य मे आक्रमण किया। फलस्वरुप गौड़ के सुलतान ने आसानी से धुटने टेक दिया।

वीर चिलाराय जी का महापुरुष शंकरदेव के साथ सम्बन्ध

आहोम के साथ महापुरुष शंकरदेव के रिस्ते धीरे धीरे बिगड़ने लगे थे। इसिलिए शंकरदेव चिलाराय के पास मदद के लिये आया था। तब चिलाराय ने उन्हे अपने घर मे आश्रय दिया था। चिलाराय ने यह बात इतना गोपनीय रखा था कि कुछ दिनो तक राजा नरनारायण को भी इसका भनक तक लगने नेही दिया। बाद मे नरनारायण को इस बात का मालुम चला और महापुरुष शंकरदेव के साथ उनका एक बड़ा ही अच्छा सम्बन्ध स्थापित हुआ। आहोम राजा चुखामफा के आक्रमण से बच कर यदी शंकरदेव को कोच राजवंश मे भी आश्रय नही मिलता तो आज असम भुमि मे स्वस्थ असमीया जाति और अभुत पुर्व संस्कृति जीवित रहता कि नही सन्देह है।

चिलाराय ने शंकरदेव के भ्राता राम राय की सुपुत्री भुवनेश्वरी के साथ विवाह सम्पन किया। बैष्णवधर्म को कोच का राज धर्म बनाने मे चिलाराय का बहुत बड़ा हाथ था।

शंकरदेव के प्रानो का रक्षा करने के बाद, काई राज्य को एक करने के बाद, इस मातृ असम भुमि को विनाशकारी विदेशीयो से मुक्त करने के पच्यात, प्राय 6 लाख सैनिको का नेतृत्व करने वाला वीर भारत माँ के सन्तान ने 1571 मे मातृ असम भुमि की गोद मे सदा के लिए अपनी आखे मूंद ली। एक वीर का वीर गाथा का अन्त हुआ। जिसे हार मंजूर नहीं था। जिसके पास अस्त्र के साथ ही शास्त्र का भी ज्ञान था।

वीर चिलाराय के बारें मे इतिहास कारो के मत

गेइत के बुरंजी के अनुसार, नरनारायण के समय कोच राज्य अपने सरम सीमा में था। लेकिन इसके पीछे चिलाराय का योगदान सबसे अधिक है। सभी राजनैतिक फसले चिलाराय ही लेता था और राजकार्य मे भी उनके बातों को ही ज्यादा महत्यदिया जाता था।

महान इतिहासकार आरनल्द जि. तयनबि (Arnold J. Toynbee) ने चिलाराय को एक महान योद्धा के रुप मे सन्मानित किया है। उन्होने ही दुनीया को वीर चिलाराय के बारे मे बताया था। उनके अनुसार चिलाराय, शिबाजी और नेपलीयान बर्नापात दुनीया के महान योध्दा थे

आज चिलाराय कि वीर गाथा सिर्फ एक असम राज्य तक ही सीमत कर रह गैया।

इस भारत भुमि मे कई बिद्वान पैदा हुये जिन्होने संसार को ज्ञान की रोशनी से रोशन कर दिया। कई वीर युद्धा पैदा हुये जिन्होने अपनी मातृभुमि की रक्षा के लिए अपने जीवन को हँसते हँसते निछावर कर दिया। इन महान वीरों मे से एक था मातृ असम भुमि मे पेदा हुए भारत के वीर पुत्र वीर चिलाराय जो चील के जैसा उड़ता था और चील के जेसा झपट्टा मरता था दुस्मानो के गर्दन पर। वही था वीर चिलाराय। चील का राजा।

...लेखन पढ़ने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद...


जानकारी  प्राप्त:
हैमान्त कुमार भराली द्वारा लिखा किताप "एहजार बचरर एशो गराकी असमीया"