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माधव कंदलि । पहला रामायण अनुवाद करता

   



     माधव कंदलि जी के जन्म के वारे में बता पाना मुश्किल है। क्योंकी उनके जम्म विवरण के बारे में कोई भी लिखित जानकारी मजूद नहीं है। लेकिन कही कही माधव कंदलि का जिक्र मिलता है। जैसे “कथा गुरुचरित” में एक माधव कंदलि का जिक्र है। वह शंकर देव के गुरु महेंद्र कंदलि जी का विद्यालय परिदर्शन करणे के लिये आया था। एक अनुमान है की यह वही माधव कंदलि जी हो सकते है।
     माधव कंदलि जी एक श्रेष्ठ कवि थे। माधव कंदलि जी के बहुत बाद के कवि थे अनंत कंदली। उनका असली नाम हरिचरण पाठक था। उस समय कंदलि उपाधि बारे विद्वान लोगो को दिया जाता था। उस तरीके से अगर देखा जाए तो माधव कंदलि जी का असली नाम दुसरा होना चाहिये। उस समय के राजा और पण्डितो ने उन्हें बिभन्न नामों से संमानित किया था। जैसे कविराज माधव कंदली, माधव कंदलि विप्र, द्विजवर माधव कंडली। यानी हो सकता है उन्हें माधव कंदलि भी अपने पांडित्य के कारण मिला हो। लेकिन वह नाम इतिहास के पन्नों में खो गया है। जिसे ढूंढ पाना बहुत मुश्किल है। 

रामायण की रचना

    रामायण रचना के संदर्भ में विभिन्न इतिहासकारो का विभिन्न मत है। कुछ के अनुसार उन्होंने १४ (14) शताब्दी के शुरुवात में रामायण की रचना की, तो कुछ के अनुसार १४ शताब्दी के अंत तरफ में रामायण की रचना की। इसलिए उन्होंने कहा, किस समय, कौनसे राजा के समय रामायण का रचना किया था वह निश्चित रूप से कह पाना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन माधव चंद्रा बरदोलोई (माधव कंदलि रामायण के प्रथम मुद्रित संस्करण प्रकाशन करता) ने अनुमान किया है कि उन्होंने जयंता-कछारी राजा के नेतृत्या में रामायण का रचना किया होगा। उनके अनुसार महमणिक्य जयंतापुर के जयंता-कछारी राजा विजयमाणिक, भनमाणिक या जशमाणिक इन तीनो में से कोई एक होना चाहिये। जयंता पुर के कछारी राजाओ को बराही राजा के नाम से जाना जाता था और वह लोग अपने आपको जयंता पुरेश्वर नाम से सम्बोधित करता था। १२ (12) से १४ (14) शताब्दी तक वह लोग उस समय के पूरे नगांव जिले में राज करता था। बरदोलोई जी के अनुसार “बराह” शब्द “बड़ो” या “बरो” शब्द के साथ समपर्क है। उन्होंने माधव कंदलि जी को नगांव के व्यक्ति कहा है।
    माधव कंदलि जी के रामायण में कुल पाँच काण्ड थे या सात काण्ड थे इसमे भी थोड़ा संदेह है। क्योंकि उनके रामायण में आदिकाण्ड और उत्तराकाण्ड पाया नही गया है। शंकर देव और माधव देव के समय भी दोनो काण्ड नही मिला। लेकिन माधव कंदलि जी के रामायण मे लंकाकाण्ड के अंतिम मे एक उक्ति के जरिये उनके रामायण मे सात काण्ड होने के बात का प्रमाण किया जा सकता है। उस उक्ति में उन्होंने सात काण्ड रामायण का जिक्र किया है। हो सकता है आदिकाण्ड और उत्तरकाण्ड इतिहास के गहराइयों में दफ्न हो गया हो। जिस तरह शंकरदेव के बहुत सारे रचना आग में जल गया था। बाद मे महापुरुष शंकरदेव और उनके शिष्य माधवदेव ने आदि और उत्तरकाण्ड की रचना कर साप्तकण्डा रामायण को संपूर्ण किया।

दुसरी रचनाये

    रामायण के अलावा भी बहुत लोगो का मानना है की उन्होंने “देवजीत” नामक काव्य का भी रचना किया था। इस काव्य में महाभारत के अर्जुन और कृष्ण का माहात्म्य विवरण किया गया है। लेकिन यह निश्चित रूप से कह पाना मुश्किल है कि यह रचना माधव कंदलि जी ने ही लिखा है कि नहीं। हेमंता कुमार भराली के अनुसार “देवजीत” काव्य के भाषा माधव कंदलि द्वारा लिखा रामायण के भाषा से बहुत निम्न मान के है। और साथ ही देवजीत काव्य में कही कही सिर्फ "माधव" नाम का ही उल्लेख मिलता है। इन सब वाजहों से “देवजीत” को माधव कंदलि की रचना बोलना थोड़ा कठिन है।
    “देवजीत” काव्य चाहे माधव कंदलि जी ने रचना किया हो या ना हो लेकिन इतना तो तह है की उन्होंने निश्चित रूप से कई सारे कविता और काव्य की रचना अव्यस्य ही किया होगा। क्योंकि रामायण को इतने मधुर भाषा में अनुवाद करने वाला विद्वान और कोई रचना ना करे यह सम्भव नही है। लेकिन बारे ही दुख की बात है की उनके रामायण के अलावा हमारे पास उनके ओर कोई भी लेखन मजूद नहीं है (देवजीत को छोड़ दिया जाए तो)। 

माधव कंदलि जी के लेखन के विषय मे

    माधव कंदलि जी कितने बड़े कवि थे यह बात महापुरुष शंकरदेव के केवल एक उक्ति से ही आप समझ जायेंगे। शंकरदेव जी ने माधव कंदलि जी को “हाथी” और अपने आपको “खरगोस” आख्या दिया है। इसी से आप माधव कंदलि जी के श्रेष्ठता का प्रमाण और शंकरदेव जी के महानुभाव का प्रमाण पा सकते है।
    इतिहास के पन्नों में उनके कई सारे उपाधि पाये जाते है, माधव कंदलि विप्र, द्विजवर माधव कंदली, कविराज माधव कंदली। यह उपाधि निश्चित रूप से उनके बुद्धिमता और रचनाये देख कर किसी राजा ने नहीं तो किसी विद्वान ने दिए होंगे। 
    ड० महेश्वर नेऔग ने माधव कंदलि जी को, "अति मनोरम" यानी बहुत मनमोहा कवि से सन्मानित किया है। 
    असम के कई सारे लेखक और विद्वानों ने माधव कंदलि जी को एक श्रेष्ठ लेखक और कवि माना है। उनके लेखन प्रणाली, भाषा का ज्ञान, शब्दों का व्यवहार इन सभी के लिए उन्हें सराहा है।

अंत मे कुछ बाते

    माधव कंदलि जी रामायण का अनुवादन करने वाले पहले व्यक्ति थे। उनके रामायण अनुवाद करने के १००-२०० साल बाद ही भारत के दूसरे विद्वानों ने रामायण का अनुवादन किया। माधव कंदलि जी ने ना सिर्फ रामायण का अनुवाद किया बल्कि उसे उत्तम असमिया शब्दों से सजाया भी। असम के लोगो को एक उत्कृष्ठ असमिया रामायण भेट दिया। माधव कंदलि जी के रामायण जोड़ता है असम के लोगो को भारत के  दूसरे प्रान्तों के लोगो से। 
    असमिया भाषा को समृद्धिशाली बनाने में माधव कंदलि जी का अभूतपूर्व योगदान है। असमीया केवल एक भाषा नही है, यह एक घागा है जो असम के सभी भाषाओं को एक करता है, जातियो को एक करता है। इस असमीया भाषा को माधव कंदलि जी जैसे विद्वानों ने महान बनाया है। उन के योगदान को असम के लोग हमेशा याद रखेंगें। 
"जय माँ भारत जय आई असम"



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।। लेखन पढ़ने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।।


जानकारी प्राप्त:
हेमान्त कुमार भराली द्वारा लिखा गया किताप “एहजार बचरर एशो असमीया”