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रुद्रा सिंह । प्रजा का राजा


रुद्रा सिंह । प्रजा का राजा
रुद्रा सिंह । प्रजा का राजा


रुद्रा सिंह

रुद्रा सिंह अहोम राजवंश में सबसे शाक्तिशाली राजा माने जाते हैंउनमें अपनी माँ जयमती जैसा त्याग और पिता गदाघर सिंह जैसा पराक्रम थावह ना सिर्फ एक पराक्रमी बल्कि एक बुद्धिमान राजा भी था  गदाघर सिंह के मृतु के प्रस्यात १६९५ (1695) में उनके बड़े बेटे लाई सिंहासन में उठकर अहोम नाम चुक्रामफा और हिन्दू नाम रुद्र सिंह ग्रहण करता है
रुद्रा सिंह का चेहरा बहत ही आकर्षक था

रुद्रा सिंह राजा बनने के बाद

रुद्रा सिंह अपने माँ और पिता के तरह ही असम को समृद्धिशाली बनाना चाहता थाउसके लिये उहोंने कोई भी कसर नही छोड़ा।

रुद्रा सिंह एक न्यायप्रिय राजा

रजा बनने के बाद उन्होंने सबसें पहले कारागार में अत्याचार सह रहे निर्दोष महंता समुदाई के लोगो को आजाद कर दियाउन्होंने हमेशा न्याय को सबसे पहले स्थान दियाअपने पिता की तरह उन्होंने उपनो को भी नही बक्साजिसके मन मे क्षमता का लोभ जाता है वे अंधे बन जाते है, इतिहास उसका हर सदी में गवाह रहा हैरुद्रा सिंह के बड़े पापा और उसके छोटे भाई के साथ भी एसा ही हुआरुद्रा सिंह के अपने बड़े पापा जाम्बर गोहाई को चरिंग का राजा और अपने छोटे भाई लेचाई को नामरूप का राजा बनाकर जिम्मेदारी दिया थालेकिन जाम्बर गोहाई ने कुछ तुंगखूङीया फोदर लोगो को साथ लेकर रुद्रा सिंह के विरुद्ध विद्रोह की घोषणा कर दियालेकिन वह सफल नही हो पाया और रुद्रा सिंह ने उन्हें निर्मम सजा दियाउसके कुछ साल बाद लेचाई भी वही गलती करने जा रहा था; जिसका भनक रुद्रा सिंह को लग गया और लेचाई के दोनों आँखे निकाल लिया, उसके कुछ साथियों को मार डाला और लेचाई को अपने साथियों के साथ राज्य से बाहर निकाल दियाजिस तरह रुद्र सिह गलति करने वालो को सजा देता था उसी तरह वह प्रजा का सहयता भी करता था।

रुद्रा सिंह के समय शिक्षा में उन्नति

खुद अनपढ़ होते हुए भी ही उन्होंने को प्रजा को शिक्षित करनें के लिए बहत ही अच्छा व्यवस्था किया थासभी अच्छे से पढ़ सके उसके लिए उन्होंने गांव गांव में विद्यालयों का स्थापना कियासाथ ही छात्रों के रहने का व्यवस्था भी कियायहा तक की बाहर जाकर शिक्षा ग्रहण करने का भी सुविधा प्रदान किया

रुद्रा सिंह का व्यपार नीति

रुद्रा सिंह मानते थे किसी भी राज्य के उन्नति के लिए शिक्षा और राजनीति के उन्नति के साथ ही व्यपार की उन्नति भी बहत ही जरूरी हैइसीलिए उन्होने व्यपार में भी असम को उन्नति के शिखर में ले जाने का निर्णय कियाउन्होंने बंगाल के नवाब, पंजाब के राजा और मध्य भारत के लोगो के साथ मित्रता स्यापन कियाअसम से दूसरे राज्य में हाथी के दाँत, मुगा सुता, मुगा कपड़ा आदि नाना प्रकार के समान भेस कर उसके बदले हीरा, माणिक आदि क्रय करते थेउसके अलावा भी उनके दिनों में तिब्बत के साथ भी बहुत ही अच्छा व्यपार होने लगा थाउन्होंने शिल्प उन्नति के लिए बहुत ही प्रयाश किया थाउसके लिए उन्होंने बंगाल से बहत सारे दर्जी, टाटी, सोनारी आदि लोगो को असम में लाये थेउन्होंने जयंतिया और कछारी राजा को अपना अधीन बनाकर उनसे मित्रता सशापन किया

रुद्रा सिंह का हिन्दू धर्म मे योगदान

महाराजा राजा प्रताप सिंह के समय से ही हिन्दू धर्म अहोम का राजधर्म थालेकिन उनके समय के बाद हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए गदाघर को छोड़कर किसीभी राजा ने उतना प्रयाश नही कियालेकिन रुद्रा सिंह ने हिन्दु धर्म से लोगो को एक किया। हिन्दू धर्म के प्रति बचपन से ही उनका एक विशेष लगाओ थाहिन्दू धर्म के जरिये उन्होंने लोगो के मन से अन्याय और अधर्म को खत्म कर न्याय और नए सोच का संशालन कियाप्रजाओं में हो रहे अंतर द्वंद को गदाधर सिंह ने काफी तक कम तो किया था लेकिन पूरी तरीके से कामयाब नहीं हो पाया थालेकिन रुद्रो सिंह ने सभी के मन से अंतर द्वंद को खत्म कर दियाउनके प्रभाव से का राज अधिकारियो ने हिन्दू धर्म को अपनाया थारुद्रा सिंह दूसरे धर्मों के लोगो को भी बहुत इज्जत और प्यार भी करता थाउन्होंने ग्वालपाड़ा के मुसलमानो को गड़गाव में घर चाने का सुबिधा दिया थाउसीके बाद से अहोम राजा को नवाब का भी नाम मिला

रुद्रा सिंह के समय खेल कूद और प्रजाओं का भागीदारी

उन्होंने सभी क्षेत्रो में लोगो को एक किया थातो फिर खेल कूद में कैसे पीछे रहतेरुद्रा सिंह मानते थे की काम के साथ साथ लोगो मे हँसी मजाक और खेल कूद की भावना होना भी बहु ही जरूरी हैंइसलिए विभिन्न खेलो का आयोजन किया, जिसमे हाथी युद्ध, भैंस युद्ध, मुर्गी जूझ, तीर मरना आदि थेइन खेलों के उपभोग के लिए रुद्रा सिंह ने रंगघर का निर्माण किया था। साथ ही उन्होने कारेंग और कई इतिहासिक चीज का भी निर्माण किया।  
अहोम में राजा सिंगरी घर मे उठते समय नर बाली का प्रथा थाइस प्रथा को रुद्रा सिंह ने बिल्कुल भी सहन नही किया और नर बाली के जगह भैं की बाली का विधान रखा

मा की स्मृति निर्माण

रुद्रा सिंह को अपने माँ का प्यार अछे से नसीब नही हो पाया थालेकिन माँ का सपना पूरा करने के लिये रुद्रा सिंह ने दिन रात महन्त कियाराज्य को भी एक कियाइसका विस्तार कियाऔर अपने के लिए स्मृतिया भी निर्माण किया
गदाघार सिंह अपने पत्नी जयमती से बहुत प्यार करता तो था लेकिन बड़े हैरानी की बात है की जयमती के याद में उन्होंने कुछ भी नही कियाकोई स्मारक भी नही बनाया बाद मे उनके बेटे रुद्र सिंह राजा (1696-1714) बानते ही अपने माँ के याद मे उसी मैदान मे यानि जेरेंगाँ पथार पर 1697 में स्मारक के रुप मे जयसागर टैंक (जयसागर तलाब) का निर्माण कियासाथ ही 1703-04 मे एक बृहत फाकुवा दोलका भी निर्माण कियाअगर रुद्र सिंह ने अपने माँ के यादों को जिन्दा नही रखा होता तो शायद आज जयमती और उनका त्याग एक काल्पनिक कहानी बन कर रह जाती

रुद्रा सिंह का मुग़लो के साथ युद्ध की तय्यारी

रुद्रा सिंह ही आहोम के एक ऐसे राजा थे जिन्होंने असम की सीमा अतिक्रमण कर दिल्ली का सल्तनत दखल करने का मन बना लिया थाइसके लिए रुद्रा सिंह ने सभी हिन्दू राजाओ से मित्रता स्थापन कियासभी के पास अपना दूत भेजासभी राजाओ ने रुद्रा सिंह का साथ देने के लिए भी तैय्यार हो गए थेउनके पास ३६ (36) पराक्रमी अहोम सैनिक थेनजदीक के राज्य ने भी (3) लाख से भी ज्यादा सैनिक भेजेलेकिन रुद्रा सिंह ने उनमे से जिन्हें युद्ध करने नही आता उन्हें वापस भेस दियायह निश्चित हुआ की १८१४ (1714) के आघोन महीने में रुद्रा सिंह युद्ध की यात्रा आरम्भ करेंगेलेकिन समय को कुछ और ही मंजूर थाभादो महीने के १३ (13) तारीख को उनका मृतु हो जाता है

रुद्रा सिंह का मृतु

मृतु के समय उन्होंने अपने पांच बेटो को उपदेश दे कर कहा था, "तुमलोग हमेशा मिलकर रहनातुमलोगो में अगर एकता नही रहेगा तो राज्य का कोई भी काम सिद्ध नही होगातुमलोगो के बीच त्रुता फैलाने के लिए बहत लोग प्रयाश करेंगालेकिन तुम लोग उनलोगों के बातों पर ध्यान मत देनाहमेशा मिल कर रहनाबुढ़ा हो, जवान हो तुममे से हर कोई क्रमानुसार राजा बनेगा" इसके कुछ दिन बाद १७१४ (1714) के भादो महीने के १४ (14) तारीख को इस असम संतान भारत माँ के वीर और प्रजा का भला चाहने वाले राजा का जीवन अध्याय समाप्त हो जाता है ओर इतिहास के पन्नों मे रुद्र सिंह की महनता दर्ज हो जाता हैं।





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।। लेख पढ़ने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।।



जानकारी प्राप्त:


हेमान्त कुमार भराली द्वारा लिखा गया एहजार बचरर एशो असमीया

हितेश्वर बरुवा द्वारा लिखा गया आहोमर दिनबर