Ads are here which will you like

सती जयमती । विरल दास्तान (Sati Jaymati A Rare Story)

सती जयमती । विरल दास्तान (Sati Jaymati A Rare Story)
सती जयमती । विरल दास्तान (Sati Jaymati A Rare Story)
If you want to read this article in English then Click here--> In English

सती जयमती । विरल दास्तान (Sati Jaymati A Rare Story)

इतिहास के न्नों में ऐसी कई कहानियां हैं जो पत्थर को भी पिघला दे। सी ही एक कहानी है असम के एक बेटी कीजिसने अहोम राजवंश के लिए, असम के लोगो के उद्धार के लिए नरक की यातनाए को कर अपने जीवन का बलिदान दे दियायह कहानी उस सती की हैयह कहानी सती जयमती की हैं

सती जयमती जी की जन्म और परिवार

सती जयमती जी की सम्पुर्ण नाम जयमती कुँवरी थीजयमती कुँवरी जी के माँ का नाम चंद्रदारु और पिता का नाम लाइथेपेना बरगोहाई था ड० सूर्यकुमार भूया के अनुसार लाइथेपेना जी के १२ बेटे और जयमती को लेकर १३ बेतिया थेंबेटियो में से जयमती सबसे बड़ी बेटी थीएक काफी बड़ा परिवार थालाइथेपेना के परिवार शुरू से अहोम के सबसे वफादार लोगो मे से थेंस्वर्गदेउ सुकाफा असम राज्य गठन करने के समय से ही उनके पूर्वज अहोम के अच्छे खासे पदों में बिराजमान हैउस हिसाब से अहोम के राजाओं के साथ उनके बड़े ही अच्छे और घनिष्ठ संबंध थे
जयमती बचपन से निस्वार्थ और दायित्वशील लड़की थीअपने कर्तव्य को ना सिर्फ बहुत ही अच्छे से जानती बल्कि उन कर्तव्य को बड़े ही निष्ठा पूर्वक पालन भी करती थी

सती जयमती जी एक पत्नी और एक माँ के रुप मे

गोबर राजा का तीन बेटें थें उनमे से गदापनी उनके दूसरे बेटे थेएक बहुत ही शक्तिशाली और बहुत ही साहसी पुरूष थे१०-१२ साल के उम्र से ही हाथी पर बैठकर शिकार करने जाते थेंएक बच्चे को इस तरह शिकार मे जाते देख सब हैरान रह जाते थै बचपन से ही वह अत्याचारी को घृणा और गरीबों कमजोर लोगो की मदद किया करते थे। गदापनी खाने पीने बहुत ही शौक़ीन थेऐसा कहा जाता है कि वह २९ व्यंजन के साथ थाली खाना अकेले ही खा जाते थे। इसके बावजूद वह आलसी या कमजोर बुद्धि वाले व्यक्ति नही थें। उनके चेहरे पर एक आलग आकर्षण था। उन्है कुछ कुस लेखकों ने एक प्रेमिक भी कहा है।
एक दिन प्रसंद गर्मी और भूख से बेहाल होकर गदापनी लाइथेपेना के घर उपस्थित होता है  तब घर की बड़ी बेटी के नाते उनके सेवा की जिम्मेदारी जयमती उठती है; और जयमती उसे बड़े ही निष्ठा पूर्वक पालन भी करती हैजयमती के अतिथि सत्कार को देख गदापनी बड़े ही प्रसन्न होते हैतभी से दोनों में प्यार होने लगता है; और घरवालो की अनुमति लेकर दोनो का विहान संपन्न होता हैविहान के बाद उनके लाई और लेचाई नामके दो पुत्र भी हुयेलेकिन दुतिराम हजारिका के अनुसार गदापनी का एक बेटी भी थाजिसे चाउदा (राजा के सिपाही और गुप्तचर) ने राजा के अनुमति से हत्या कर दिया

सती जयमती हजारों दर्द सहने वाली एक साहसी वीरांगना

१६७३ (1673) से १६८१ (1681) के बीच आहोम मे कुल छह राजा बनेऔर अंत मे १६७९ (1679) मे राजा लालुकसोला बरफुकान ने मोगलो की सहायता से १४ (14) साल के चुलिकफा यानि लौड़ा राजा को राजा बनायावह सिर्फ नाम का राजा थाउसको चलने वाला लालुकसोला बरफुकान थाउसने अपने मनमर्जी से शासन चलना शुरु कर दियासारो तरफ अराजकता फैलने लगा  कोई भी बिद्रोह ना कर पाए इसीलिए चाउदा को निर्देश दिया की उह सभी युवराजों को जो भी राजा बन्ने के लायक है उन सबको मार डाले या अपाहिज कर देचाउदा सभी युवराजों का हत्या करने लगातब गदापनी को मजबुरन अपने बीबी बच्चों को धर में छोड़ कर भागना पड़ा
कुछ इतिहासकरो का मानना है की गदापनी को धर छोड़ कर भागने के लिए अव्यस्य ही जयमती ने कहा होगाक्यों की अगर उह नही भागते तो चाउदा के हाथों मारे जातेऔर असम के लोगो को लालुकसोला के अत्याचारों से कोई मुक्त नही कर पातालेकिन कुछ इतिहास करो का यह भी मानना है की जयमति ने अपने दोनो बेटों को पिताजी के घर रख कर गदापनी के साथ भागी थीऔर बाद में राजा के गुप्तचर ने जयमति को पकड़ लिया
गदापनी घर से भागकर नागापाहड़ और असम के जंगलों में छिप गयाऔर राजा के विरुद्ध युद्ध की तैय्यारी करने लगाकिसीको गदापनी के बारे में कुछ पता नही थाइधर रोड़ा राजा और लालुकसोला बेचैन होने लोगा गदापानि को पकड़ ना पाने के कारण दोनो पागल होने लगे तभी जयमति को पकड़ कर लाया जाता हैंजब गदापनी के बारे में पूछने पड़ भी जयमति कुछ नही बोलती तब उसे को जेरेंगा पथार (जेरेँगा मैदान शिवसागर जिला) में ले जाकर बांच में बंध दिया जाता हैउसके बाद से जयमति के ऊपर निर्मम अत्याचार कर गदापनी के बारे में पूछा जाता हैलेकिन जयमति अपना मुह नही खोलतीजयमति को कोड़े से पिता जाता है, शरीर के अंगों को चेपा जाता हैनिर्मम तरीके से अत्याचार किया जाता हैलेकिन वह अत्याचार जयमति को पिघला नहीं पताअपने पति के बारे एक शब्द नही बोलतीक्योंकि वह जानती है लालुकसोला को उसका पति ही मिटा सकता हैइसीलिए वह चुपचाप सारे अत्याचारों को सहती जाती है
उस दौरान गदापनी नागापाहड़ में भेस बदल कर रह रहा थातभी उहा आये कुछ नागाओ के मूह से जयमति के ऊपर हो रहे अत्याचारो के बारे में मालूम चलता हैवह बेचैन हो जाता है और एक दिन भेस बदल कर मौका देखकर बांच में लटकी हुवी जयमति के सामने जाता हैपति कितना भी भेस क्यो ना बदल लें पत्नी की आँखे उसे पहसान ही लेती हैगदापनी कहने लगता है की, शुनो! क्यों इतना दर्द सहन कर रही हो? अपने पति के बारे में बोल क्यों नही देतीअपने पति को देख जयमति हजारो दर्द के बाबजूद खुस तो होती है लेकिन साथ ही उसे डर भी लगता है की कोई उसके पति को देखकर पहचान ना लेइसीलिए जयमति ना पहचाने का ढोंग कर उसे कहती है, "मुझे अपने पति के वारेमे कुछ नही मालूमआपको क्या हुआ? किसने बुलाया? चले क्यों नही जाते" जयमति रोने लगींउस समय उन दोनों के ऊपर क्या बिता होगा वह कोई बया नहीं कर सकताजिस औरत को अपने से भी ज्यादा प्यार करता था, जब उस औरत को इस तरह बांध कर लहू लुहान देखा तो सोचिये उस इंसान पर क्या बीता होगालेकिन उससे भी भयानक बात यह है कि उस इंसान के पास उस समय उस औरत को उस हालात में छोड़कर जाने के अलावा और कोई रास्ता भी नही थाक्योंकि उसके ऊपर समाज के लोगो की आशाएं जुड़ी हुयी थीइसीलिए पत्नी की बाते सुनकर ना चाहते हुवे भी गदापनी को जाना पड़ा लेकिन शायद एक वादे के साथ कि वह आएगा जयमति अपने पति की तरफ देखती रही
उसदिन के बाद जयमति के ऊपर और - दिनों तक अत्याचार किया गयानिर्ममता की हद पार कर दिया गयाऔर १४ (14) दिनों तक अत्याचार सहने के बाद १६७९ (1679) के १४ चेत तारीख को इस महान वीरांगना ने प्राण त्याग दिए१४ दिनों तक निरंतर अत्याचार सहती रही लेकिन अपने पति के बारे में एक शब्द नही बोलीपति से बात करने का मौका भी मिला लेकिन अच्छे से बात भी नही कर पाईक्योंकि उसे डर था कही उसके पति को कोई देख ना लेअगर पति को कुछ होता जाता तो असम को लालुकसोला के हाथों से बचाने बाला उस समय शायद ही कोई थाइसलिए पति का जिंदा रहना जरूरी थाऔर इसीलिए जयमति सारे अत्याचारो को सहती रही और अपने पति के लिए, समाज के लोगो के लिए के लिए अपने जीवन की आहुति दे कर सति हो गयी   
जयमति के अत्यचार के समय सारे चुप थेउनके पिता, उनके भाई किसीने भी आवाज नहीं उठाया
     दुतिराम हाजारिका के अनुसार जयमती की एक बेटी भी थी जीसे लोड़ा राजा के आदेश पर हत्या कर दिया गयादुसरी तरफ ड० सूर्यकुमार भूया के अनुसार मृतु के समय जयमति गर्भवती थी

जयमती जी के मृत्यु के बाद

गदापानि कुछ नगा सैनिको को लेकर जेरेंगा मेदान मे आता तो है, लेकिन तबतक जयमति की मृतु हो चुकि होती हैउसे जयमति की लाश भी देख ने को नसीब नही होतावही अंतिम मुलाकात था दोनों का जिस दिन गदापानि भेस बदल कर मिलने आया था
 जयमति के मृतु के बाद गदापानि पगाल जैसा हो जाता हैउसे समझ नहीं आता की वह क्या करेअहोम के साथ लड़ना इतना आसान नहीं थाउसे और सैनिकों की जरुरत थीलेकिन तभी गदापानि को उसके जीजा बन्दर बरफुकन का साथ मिलता हैजयमति के मृतु के दो साल बाद लालुकसोला और लौड़ा राजा को मार कर १६८१ (1681) मे गदापानि रजा बनता हैऔर औहोम नाम सुपातफ और हिन्दु नाम गदाधर सिंह नाम ग्रहण करता हैउसके बाद सभी गद्दारो को निर्मम से निर्मम सजा दिया जाता हैगुवाहाती मे कब्जा कर रहै मोगलो को माति और नदि मे युद्ध कर बरे ही आसानी से भगा देता हैयही मोगलो के साथ अंतिम लड़ाई थीइसके बाद मोगलो ने असम की तरफ देखने का हिम्मत भी नहीं किया

जयमती जी की स्मारक

गदापानि राजा बन्ने के बाद उनका सहायता करने वाले तीन नागा औरतो के लिये स्मारक के रुप मे तीन तलाबे तो बनाया लेकिन बड़े ही हेरानी की बात है की जयमति के लिए कोई
स्मारक नही बनायाबाद मे उनके बेटे लाई यानी रुद्र सिंह राजा (१६९६-१७१४) (1696-1714) बानते ही अपने माँ के याद मे उसी मैदान पर १६९७ (1697) में स्मारक का रुप मे जयसागर टैंकनिर्माण करता हैसाथ ही १७०३-०४ (1703-04) मे एक बृहत फाकुवा दोलका भी निर्माण करता है अगर रुद्र सिंह ने अपने माँ के यादों को जिन्दा नही रखा होता तो शायद आज जयमति एक काल्पनिक कहानी बन कर रह जाती

जयमती दिवस

जयमती के बलिदान को नमन करते हुये असम के लोग हर साल के २७ (27) मार्च को जयमति दिवस मना ते आये है और हमेशा मनाते रहेंगा



अगर आपको मेरा लिखावत अच्छा लगे तो दुसरो तक भी पहुँचायेगाअगर खराब लगे तो निचे अपनी टिप्पणी जरूर दीजिएगाताकि में अपने लेखन प्रणाली को और बेहतर बना सकू

।। लेख पढ़ने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।।


If you want to read this article in English then Click here--> In English



जानकारी प्राप्त:


हेमान्त कुमार भराली द्वारा लिखा गया एहजार बचरर एशो असमीया

हितेश्वर बरुवा द्वारा लिखा गया आहोमर दिनबर