Ads are here which will you like

गदापानी । मुग़लो के साथ अंतिम युद्ध


गदापानी । मुग़लो के साथ अंतिम युद्ध
Ahom Kingdom (1228–1826)

गदापानी के जीवन मे जितने रहस्य है शायद ही किसी और अहोम राजा के जीवन मे होगा  उनको समझना बहुत ही मुश्किल हैबहुत हैरान और असाधारण राजा थे

गदापानी जी का जन्म विवरण

     गदापानी के पिता थे गोबर राजा। गोबर राजा मात्र २० दिन के लिए ही राजा बन पाए थे।  वह तुंगखुंगिया राजवंश से हैं। तुंगखुंगिया राजवंश अहोम वंश की एक शाखा थी। गोबर राजा के तीन बेटे थेसबसे बड़े वाले का नाम जम्बूर और सबसे छोटे वाले का नाम गोविंद थागदापानी मझला बेटा थाबचपन से ही गदापानी का साहस देख सब लोग हैरान मानते थेवह १०-१२ साल के उमर में ही हाथी पर बैठ कर शिकार कारने जाता थाबारे ही निडर और शक्तिशाली युवराज थेलेकिन साथ में ही गरीबों से प्यार और अत्याचारी को घृणा भी करता था
उस समय अहोम पंडित घरमे फोडर के युवकों (देऊधाइ, बाईलूं, महन इत्यादि) को धर्म और इतिहास की शिक्षा देता था लेकिन कभी कभी बड़े अधिकारी के बेटे वह शिक्षा लेते नही थेगदापानी भी उनमे से एक थालेकिन उनमें ना तो शक्ति का कमी था और नही ज्ञान कासा कहा जाता है की वो २९ व्यंजन के साथ थाली खाना अकेले ही खा जाते थेलेकिन फिर भी उनमे आलस ही था उनका चेहरा बहुत ही आकर्षक थाउन्हे कई लेखक एक प्रमिक भी कहते है।

गदापानी और जयमती का विवाह

एक दिन प्रसंद गर्मी और भूख से बेहाल होकर गदापानी लाइथेपेना के घर उपस्थित होता है तब घर की बड़ी बेटी के नाते उनके सेवा की जिम्मेदारी जयमती उठती हैजयमती उसे बड़े ही निष्ठा पूर्वक पालन भी करती हैजयमती के अतिथि सत्कार से गदापानी बड़े ही प्रसन्न होते हैतभी से दोनों में प्रेम होता हैऔर घरवालो की अनुमति ले कर दोनो का विहान संपन्न होता हैविहान के बाद उनके लाई और लेचाई नामके दो पुत्र भी हुवेलेकिन दुतिराम हजारिका के अनुसार गदापानी का एक बेटी भी थाजिसे चाउदाँ (राजा के सिपाही) ने राजा के अनुमति से हत्या कर दिया

गदापानी और जयमती का विद्रोह

१६७३ (1673) १६८१ (1681) से के बीच मे कुल छह राजा बनेक्षमता पाने ले लिये लोग किस हट तक गिर सकते है, यह इस  साल का इतिहास उसे अच्छे से बया करता हैदेबेरा बरबारूवा के राजनीति, बहुत सारे उतार चढ़ा और हत्याओ के बाद १६७९ (1679) मे सेनापति लालुकसोला बरफुकान ने मोगोली की सहायता से १४ (14) साल के चुलिकफा (लोरा राजा) को राजा बनायाजिस मोगलों को लालुकसोला के बड़े भाई लाचित बरफुकान ने धूल चटाया था उसी मोगलों से लालुकसोला ने अपने फायदे के लिए मदद मांगी और गुवाहाती को मुग़लो के हाथो चोर दिया। 
लौड़ा राजा सिर्फ नाम का राजा थाउसको चलाने वाल लालुकसोला बरफुकान थावह अपने मनमर्जी से शासन चला रहा थासारो तरफ अराजकता फैलने लगामोगलों का भी दबदबा बढ़ने लगालोरा राजा ने  कोई भी बिद्रोह ना कर पाए इसीलिए चाउदा को निर्देश दिया की उह सभी युवराजों को जो भी राजा बने के लायक है उन सबको मार डाले या अपाहिज कर देचाउदा सभी युवराजों का हत्या कर रहा थातब गदापानी को अपने वीवी बच्चों को धर में छोड़ कर भागना पड़ा
इतिहासकारो का माना है की गदापानी को धर छोड़ कर भागने के लिए अवश्य ही जयमती ने कहा होगाक्यों की अगर उह नही भागते तो चाउदा के हाथों मारे जातेऔर असम के लोगो को लालुकसोला के अत्याचारों से कोई मुक्त नही कर पाता। लेकिन कुछ इतिहासकरो का यह भी मानना है की जयमती ने अपने दोनो बेटों को पिताजी के घर रख कर गदापानी के साथ गयी थीऔर बाद में राजा के जासूसों ने जयमती को पकड़ लिया था

गदापानी जी के प्राणों की रक्षा और राज्य गठन

अपने प्राणों के रक्षा के लिए गदापानी नागा पहाड़ो में नागा भेस लेकर चुप गया थायहा गदापानी को लेकर बहुत सारे प्रवाद हैइस दौरान गदापानी कही भी लम्बे समय तक नही रुकाहमेशा अपना जगह बदलता रहाकभी किसके घर मे तो कभी जंगलो में
गदापानी नागापाहड़ में भेस बदल कर रह रहा थातभी उसे हा आये कुछ नागाओ के मूह से जयमती के ऊपर किये गए अत्याचारो के बारे में मालूम चलता हैवह बेचैन हो जाता है और एक दिन भेस बदल कर जेरेँगा मैदान (शिवसागर) पहुँच गया और मौका देखकर बांच में लटकी हुवी जयमती के सामने जाता हैगदापानी कहने लगता है की, "शुनो! क्यों इतना दर्द सहन कर रही हो? अपने पति के बारे में बोल क्यों नही देती" अपने पति को जयमती पहचान जाती हैपति को देख जयमती हजारो दर्द के बाबजूद खुस तो होती है लेकिन साथ ही उसे डर भी लगता है की कोई उसके पति को देखकर पहचान ना लेइसीलिए जयमती ना पहचाने का ढोंग कर उसे कहती है, "मुझे अपने पति के वारेमे कुछ नही मालूमआपको क्या हुआ? किसने बुलाया? चले क्यों नही जाते" जयमती रोने लगीं। उस समय उन दोनों के ऊपर क्या बिता होगा वह कोई नही बया कर सकता। उस समय उन दोनों के ऊपर क्या बिता होगा वह कोई नही बया कर सकता। जिस औरत को अपने से भी ज्यादा प्यार करता था जब उस औरत को इस तरह बांध कर लाहु लुहान देखा ते सोचिये उस इंसान पर क्या बिता होगा। लेकिन उस से भी भयानक बात तो यह है की उस इंसान के पास उस समय उस औरत को उस हालात में छोड़कर जाने के अलावा और कोई रास्ता भी नही था।क्योंकि उसके ऊपर समाज के लोगो की आशाएं जुड़ी हुयी थी। इसीलिए पत्नी की बाटे सुनकर ना चाहते हुये भी गदापानी को जाना पड़ा। कोई भी युद्धा कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो उसका भी सीमाई होता है। जयमती अपने पति की तरफ देखती रही।
उसदिन के बाद जयमती के ऊपर और - दिनों तक अत्याचार किया गयानिर्मम ता की हट पार कर दिया गयाऔर १४ (14) दिनों तक अत्याचार सहने के बाद १६७९ (1679) के १४ चेत तारीख को इस महान विरांगना ने प्राण त्याग दिए१४ दिनों तक निरंतर अत्याचार सहती रही लेकिन अपने पति के बारे में एक शब्द तक नही बोली
उसके कुछ दिन बाद गदापानी कुछ नागा सैनिकों के साथ जेरेँगा मैदान गया तो था लेकिन तब तक बहुत देर हो चुका था  
गदापानी समझ नही पा रहा था क्या जाय, तभी उसे अपने जीजा बन्दर बरफुकान का साथ मिलता हैबन्दर बरफुकान का भी साहस बढ़ता है और वह चुपके से सभी लोगो को एके जुट करना शुरू कर देता है  उसके बाद लालुकसोला की हत्या कर लौड़ा रोजा को युद्ध मे हराकर  १६८१ (1681) में राजा बनता है गदापनीराजा होकर उसने अहोम नाम छुपाटफा और हिन्दू नाम गदाघर सिंह रखा

गदापानी जी के छोटे भाई गोविंद

साहस और पराक्रम में गदापानी से कम ना था गोविंदजिंदगी में कभी हार ना मानने वाला व्यक्ति थालेकिन एक ज्योतिषी ने उसकी कुंडली देख कर यह कहा था की एक दिन यही गोविंद तुंगखूङीया फोदर का वंश में कलंक बनेगातब गोबार राजा के मन मे यह बात सताने लगाऔर एक दिन जब गोविंद छोटा था तब उसका निर्भीकता देख कर उसका सिर कलम करणे का निर्देश दे दियालेकिन वक्त में देबेरा वरवरूवा ने गोविंद को बचा लिया 
गदापानी का छोटे भाई के साथ रिश्ता उतना खराब नही थालेकिन दोनो में अपने ताकत को लेकर अहंकार थाएक दिन दोनो में बहस हुतब दोनो लड़ने के लिए तय्यार हुएगोविंद ने गदापानी का आशिर्वाद लिया और गदापानी ने भी आशीर्वाद दे कर लड़ने के लिए तय्यार हो याउस समय सब लोग चुप चाप देख रहे थेउन दोनों को रोकने का साहस किसी में ना थातभी उनके गुरु उन दोनों को रोकने की कोशिश करते है लेकिन वह दोनों गुरु की बात नही मानतेतब और कोई उपाई ना पाकर गुरु ने अपने ही छाती मेें छुरी घुसा ली और उन दोनों के बीच गिर गयातब दोनो हैरान हो गए दोनों उस समय वहा पर ही खड़े रहे और गदापानी ने अपने छोटे भाई को टुंखूंगया राज्या छोड़ कर जाने बोलागोविंद ने बड़े भाई का आदेश मान कर वहां से चला गया
बहुत साल बीत गए लेकिन गोविंद लौट कर नही आयालेकिन एक दिन जब गदापानी बान्दर बरफुकान के साथ सैनिक जुटा रहा था तब गोविंद आयापहले गदापानी ने सोचा की वह लड़ने आया है बाद में समझ गया की वह उसकी मदद करने आया हैगोविंद आकर घोड़े से उतर कर घुटनो के बल कहने लगा, "ककाइदेउ (बड़े भाई)! अभी भी तुंगखूङीया फोदर का कुल धर्म और मान मर्यादा खत्म नही हुआ हैअभी अभी लोरा राजा के दो गुप्तचर को मार के आया हु।" दोनो एक दूसरे को देख गले मिलते है और दोनों के आखो से आंसू गिरने लगते हैदोनो ने सभी मद-भेद भुला दिये और एक हो गएलेकिन समय बड़ा निष्ठुर है

गदापानी राजा बनने के बाद

राजा बनकर गदापानी बन गया गदाघर सिंह। अब वक्त था गद्दारो को सजा देने काकर्म के फल से कोई नही बच सकता। किसीना ना किसी रूप में वह आएगा हीइसबार भी आया निर्मम रूप मेंजयमती के अत्याचारियों को निर्मम सजा दिया गयामोगलों का साथ देने वालो को निर्मम से निर्मम सजा दिया गयाकोई भी नही बच पायाजयमती के त्याग को गदापानी किसी भी कीमत व्यर्थ नहीं जाने देना चाहता थाजंगलो में घुमकर उसने जीवन के वारेमे बहुत कुछ सीख लिया थासमय ने उसको उसी तरीके से समझाया
उसने उन लोगों को भी नही बख्शा जिन लोगों ने उसे राजा बनने में मदद कीआज वह लोग लौड़ा राजा से गद्दारी कर मुझे राजा बना सकते है तो फिर काल शायद मेरे से गद्दारी कर किसी कमजोर को भी राजा बना सकता हैगदापानी कि इसी निर्ममता को कुछ लोग आलोचना भी करते है क्योंकि उसने पनो को भी नही छोड़ाउसके जीजा बंदर बरफुकान को भी नही छोड़ाउसने बंदर बरफुकान को मृतु का सजा तो नही दिया लेकिन उनसे उनका बरफुकान का सन्मान छी लिया और राज्या से निकाल दिया उनके स्थान पर बरफुकान बनाया निरंजन कोउन्हें संदिको निरंजन बरफुकान कहते हैउह भी कम नही थासबको ढूंढ ढूंढ कर मारा, लालुकसोला बरफुकान का जो भी मिला सबको मारा, देबेरा बरबारूवा का जो भी मिला सबको मारा
लेकिन इसका विरोध किया था गोविंद नेउन्होंने गदापानी को समझाने की बहुत कुछ की लेकिन वह नहीं मानाअपने जीजा के साथ ऐसा सलूक करने के लिए मना किया लेकिन गदापानी अटल रहाऔर अंत में अपने दीदी और जीजा के साथ वह भी राज्य छोड़ कर चला गयाकुछ दिन बाद लोगो के मुह से सुनने को आया की गोविंद अपने दीदी और जीजा को छोड़ कर कही चला गया हैकहा गया किसीको नही मालूम
इसा नही है की गदापानी ने सिर्फ सबको सजा ही दियाहर सिक्के का दो पहलू होता हैगदापानी का दूसरा पहलू बहुत दयालु भी थागदापानी ने उन सभी को संमानित भी किया जिन लोगो ने गदापानी का मदद भी क्या थाकिसीको पुरस्कृत तो किसीको राजदरवार में जगह दियाकिसके नाम में तालाब बनाया तो किसीको सोने से जड़ दियाइसके अलावा बहुत लोगो का मदद भी क्याअच्छे के साथ बहुत अच्छा और खराब के साथ बहुत खराब बनता था गदापनीइएलिये शायद उनको समझना इतना आसान नही
गदापानी एक हिन्दू शासक थाधर्म के उन्नति के लिए उन्होंने बहुत सारे काम भी किये और साथ ही बेष्णव घर्म को भी प्राधान्य दिया

मुग़लो के साथ अंतिम युद्ध

लालुकसोला के मदद से मुग़ल कामरूप तक तो पहुंच गया था लेकिन बाद में बंदर बरफुकान ने उनलोगों को वहां से भगा दियाउसके वाबजूद भी मुग़ल और बुरी तरीके से हारना चाहता थाइसी मंसूबे को आगे रख कर गदापानी राजा बनने के दो साल बाद मांशूर खाँ आसाम आक्रमण करने आता हैंउस समय गुवाहाटी में संदिको बरफुकान थासंदिको बरफुकान को अपना पराक्रम दिखाने ने का अच्छा मौका मिलायुद्ध के लिए इटाखुली नामक जगह का चयन किया गयाएक भीषण युद्ध हुआमुग़ल बुरी तरीके से हारने लगाअसम के वी युद्धा के सामने मुग़ल कही टिक ही नही पा हे थेमुग़ल कमजोर पड़ने लगे थे तभी मुग़लो का एक सेना नायक को उन सैनिको को प्रोत्साहन देते देखा यायह जान कर संदिको बरफुकान ने सैनिकों के साथ उसे मारने गयालेकिन उस सेनानायक को देख सब हैरान रह गएकिसीको अपने आखो विस्वास नही हुआक्योंकि की वह गोविंद थाअपने भाई के विरुद्ध युद्ध करना चाहता थाक्योंकि दोनों भाइयो के मकसद भलेही एक हो लेकिन विचार अलग थे (इसमे मेरा कहने का मतलब यह हैं की दोनो भाई चाहते तो थे असम की उन्नति लेकिन अपने अपने तरीके सेगदापानी के प्रणाली को भाई पसंद नही करता था लेकिन जो गोविंद ने किया वह भी गलत थावह मुग़लो को असम में लाकर असम को गुलाम बनाने जा रहा था)  संदिको बरफुकान ने अपने सैनिकों के साथ उसे ग्रेपतार कर लियाइटाखुली के युद्ध मे मांशूर खाँ का मृतु हुआ और मुग़ल कभी सिर ना उठा सके इस तरह परास्त हुआ यही मुग़लो के साथ अंतिम युद्ध था।
युद्ध मे विजय प्राप्ति की खबर सुनकर गदापानी ने सभी को जश्न का उत्सव मनाने का आदेश दियालेकिन अपने भाई की विश्वासघात के खबर ने उन्हे बहुत कष्ट दियाजब विचार अलग हो तब भले ही लक्ष्य एक क्यों ना हो लेकिन रास्ते अलग होते हैगदापानी ने अपने मंत्रियों से सलाह कर एक कठोर निर्णय ले लियाउत्सव खत्म होने के बाद ही गोविंद के जीवन का भी अन्त हुआ।

गदापानी जी का मृतु

गदापानी ने अपने शासन काल मे अहोम को एक नयी ऊंचाई दीजिस समय अहोम बिखर ने के कगार में था तभी जयमती और गदापानी ने अहोम की रक्षा की और साथ ही असम के लोगो को लालुकसोला, लौड़ा राजा और मुग़ल के अत्याचारों से मुक्त कियासमय बड़ा निर्मम हैयह समय किसको क्या बना दे कोई कुछ नही कह सकताइसी समय ने एक प्रेमिक गदापानी को निर्दयी गदाघर सिंह बनायाजिसने हर छोटे बड़े गुन्हेगारीको सजा दियाहा तक कि अपने जीजा और भाई तक को नही बख्शा१६७१ (1671) से १६८१ (1681) के घिनोने राजनीति ने ही शायद एक प्रेमिक को शासक बनायाकुछ के लिए वह महान है और कुछ के लिए निर्दयीलेकिन जो भी हो उनके समय असम एक शक्तिशाली और समृध्द राज्य था और वह एक शक्तिशाली राजाइसी शक्तिशाली राजा का मात्र १४ (14) साल के शासन के बाद १९९६ (1995) में मृतु हो जाता है



अजीब सा बात 

गदापानी अपने पत्नी जयमती से बहुत प्यार करता तो था लेकिन बड़े हैरानी की बात है की जयमती के याद में उन्होंने कुछ भी नही कियाकोई स्मारक भी नही बनाया बाद मे उनके बेटे लाई यानी रुद्र सिंह राजा (1696-1714) बानते ही अपने माँ के याद मे उसी मैदान पर 1697 में स्मारक का रुप मे जयसागर टैंक का निर्माण करता हैसाथ ही 1703-04 मे एक बृहत फाकुवा दोलका भी निर्माण करता हैअगर रुद्र सिंह ने अपने माँ के यादों को जिन्दा नही रखा होता तो शायद आज जयमती एक काल्पनिक कहानी बन कर रह जाती

गदापानी के बारे में शायद एक नतीजे मे आना मुस्किल है लेकिन इतना कहना आसान है कि प्रजा बनकर राजा का आलोचना करना आसान है लेकिन राजा बनकर प्रजा का उद्धार करना बहुत मुश्किल।

इसीलिए शायद गदापानि के समझना इतना आसान नही है।



अगर आपको मेरा लिखावत अच्छा लगे तो दुसरो तक भी पहुँचायेगाअगर खराब लगे तो निचे अपनी टिप्पणी जरूर दीजिएगाताकि में अपने लेखन प्रणाली को और बेहतर बना सकू

।। लेख पढ़ने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।।



जानकारी प्राप्त:


हेमान्त कुमार भराली द्वारा लिखा गया एहजार बचरर एशो असमीया

हितेश्वर बरुवा द्वारा लिखा गया आहोमर दिनबर