धान सिंह थापा एक वीर गोरखा - Dhan Singh Thapa a Brave Gorkha |
“अगर कोई मरने से नही डरता या तो वह झूठ बोल रहा हैं या तो वह गोरखा हैं।”
Field Marshal Sam Manekshaw
धान सिंह थापा भारत माता का वह वीर संतान हैं जिन्होंने चीनी सैनिकों को नानी याद दिला दिया था। गोली खत्म होने पर भी अपने खुकरी से चीनी सैनिकों को चिढ़ कर रख दिया था। यह लेख उसी वीर गोरखा सैनिक की कहानी हैं।
जलते हुए ज्वाला से भी ज्यादा गर्म खून जिसके रगों में दौड़ता हैं, जिसके हाथ शेर के पंजे से भी ज्यादा खूंखार हैं वही हैं वीर गोरखा। जो नदी जैसा शांत हैं, ज्वालामुखी जैसा गर्म। जो अपने मौत से नही डरता, जो दुश्मनों का एक ही जटके में छीन लेता हैं जान वही हैं भारत माँ के शान वीर गोरखा। और इसे ही वीर गोरखा के एक जवान थे Lieutenant Colonel धान सिंह थापा। जिन्होंने भारत चीन के 1962 के युद्ध में चीनी सैनिकों के ऊपर टूट पड़े था।
धान सिंह थापा का जन्म
धान सिंह थापा जी का जन्म 20 अप्रैल, 1928 में हिमाचल प्रदेश के शिमला में हुआ था। उन्हें 28 अगस्त, 1949 में 8 गोरखा राइफल्स के पहली बटालियन में शामिल किया गया था।
भारत चीन युद्ध का आरम्भ
ताकत के बल पर अपना क्षेत्रा बढ़ने के नीति में चलने वाले चीनी भारत के अभिन्न अंग को भी कात कर हथियाना चाहता था। इसी मंसूबे को आगे रख कर चीनी हमेशा से भारत मे घुसने की कोशिश करते आ रहा हैं। जिस के बजे से भारत और चीन के रिश्ते हमेशा खरब ही होते आए हैं। भारत ने तो हमेशा दोनो हाथो से चीन के से दोस्ती का हाथ बढ़ाया हैं। लेकिन चीन ने हमेशा अपना एक हाथ ही दोस्ती के लिए बढ़ाया और दूसरा हाथ छुपाकर रखा हैं। इसका जीता जाता सबूत हैं 1962 का भारत चीन युद्ध हैं।
हिमालय के कुछ क्षेत्रों के ऊपर चीन जबरन कब्जा करना चाहता था। जिसके वाजे से भारत और चीन के बीच तनाब बढ़ रहा था। चीन के बढ़ते हुए घुसपैठ को रोकने के लिए भारतीय सेना द्वारा दिये गए प्रस्ताव को उस समय के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नहरू जी ने खारिज कर दिया था। उसके वजाए उन्होंने अपने अधिकारी द्वारा दिये गए प्रस्ताव को ज्यादा महत्यो देते हुए "Forward Policy" को मंजूरी दे दी। जिसके तहत भारत के सैनिक चीनी सैनिको के सामने अपने छोटे छोटे पोस्ट की स्थापना करेंगे। लेकिन इस Policy ने जंग का मौका ढुंढ रहे चीनी सरकार को जंग का मौका दे दिया। चीनी सरकार ने भारत के ऊपर इल्जाम लगते हुए जंग का एलान कर दिया। और 19-20 अक्टूबर, 1962 के सुबह चीन ने भारत चीन युद्ध का आरम्भ करते हुए भारत पर हमला कर दिया। उनलोगों ने भारतीय क्षेत्रो के पूर्वी क्षेत्र पर हमला किया। उसी रात उनलोगों ने गालवान, चिप चैप और लद्दाख के पेंगांग इलाकों में भी हमला कर दिया।
धान सिंह थापा का नेतृत्व
Forward Policy के तहत श्रीजेप 1 में 1 बटालियन द्वारा, 8 गोरखा राइफल्स द्वारा पोस्ट स्थापित किया गया था। उस 48 Square Kilometer क्षेत्रों की जिमेदारी धान सिंह थापा के कंधो पर था। उस समय Lieutenant Colonel धान सिंह थापा मेजर के पद पर थे। 1 बटालियन के D Company मेजर धान सिंह थापा के निर्देश में था। श्रीजेप 1 ओर कई जगाहो पोस्ट बनाना बाकी थालेकिन D Company के पास आदमी थे केवल 28। जिनके पास कोई आधुनिक हथियार नही थें। हथियार के नाम पर द्वितीय विश्वयद्ध के दौरान इस्तेमाल किए गए हथियार ही थें। लेकिन 28 गोरखा रेजिमेंट के सामने था अत्याधुनिक हथियार धरण कर रहे करीब 600 चीनी सेना। लेकिन भारत के गोरखा इस बात का फिक्र नही करते की दुश्मन कितने, उन्हें बल्कि इस बात का फिक्र रहता हैं की कही वह सामने वाले सिपाही से कम दुश्मनों को ना मार दे।
मेजर धान सिंह थापा अपने क्षेत्रो के सभी पोस्ट पर नजर रख रहे थे। मेजर थापा के साथ थे सूबेदार मिन बहादुरी गुरुंग। मेजर थापा लगतार सिपाहियो का हौसला बढ़ा रहे थे। मेजर ने अपने सिपाहियों को कहा था की अगर तुम मारो तो एकेले नही बल्कि दस चीनी सैनिकों को लेकर मारो।
19 अक्टूबर, 1962 को चीनी सैनिकों के संख्या में बृद्धि देखा गया। मेजर थापा के पास 28 वीर गोरखा के युद्धा थे। उनको समझ आ गया था की अब किसी भी वक्त हमला हो सकता हैं। इसीलिए उन्होने सैनिको को खुदाई करने का निर्देश दिया। लेकिन औजार के कमी के कारण बहादुर गोरखा सिपाहियो ने अपने हाथो से खुदाई की। अपेक्षा के अनुसार चीनी सैनिकों ने 20 अक्टूबर को सुबह 4:30 बजे पोस्ट पर हमला कर दिया। मेजर धान सिंह थापा का योजना काम आ गया क्योंकि उस खुदाई ने ढाई घंटे चले गोलीबारी में सैनिको को अच्छा मदद किया था। गोलीबारी खत्म होने के बाद करिब 600 चीनी सैनिक पोस्ट के 140 मीटर के अंदर फस गए थे। तभी भारत के गोरखाओं ने चीनी सैनिकों के ऊपर हमला कर दिया। बहुत चीनी सैनिक मारे गए। भारत के सैनिको के पास गोला बारूद बहुत ही कम था। ऐसा भी एक समय आया था, जब भारत के गोरखाओं ने अपने हाथों से लड़ाई किया।
चीनी सैनिको ने भी अपना हमला जारी रखा और इस बार गोरखा के कई जवान शाहिद हो गए। धीरे धीरे चीनी सैनिक नाजदिक आते गए। पहले हमले के बाद वह लोग अपने तोपखाने के साथ 140 से 46 मीटर करीब पहुँच गए थे। चीनियों ने दूसरा हमला शुरू किया। गोरखाओं ने भी अपने LMG (Light Machine Gun) हथियारों से हमला किया। उस समय सूबेदार गुरुंग बंकर में एलएमजी को संभाल रहे थे। तभी एक बम फत्ता हैं और सारा मालवा उनके ऊपर गिर जाता हैं। लेकिन हर मानना गोरखाओं के फितरत में नही। वे मलवे से अपने आपको निकलकर चीनी सैनिकों के ऊपर टूट पड़ता हैं और कई चीनी सेनिको को मत के घाट उतार देता हैं। लेकिन अंत मे उनका भी मोत हो जाता हैं।
दूसरे हमले के बाद केवल तीन ही गोरखा बच गए थे। चीनी सेनिको ने तीसरा हमला शुरू किया। इधर मेजर थापा के पास गोला बारूद खत्म हो सुका था। तब इस वीर गोरखा ने भारत माँ का नाम लेते हुए नेपालियों का शान अपना खुकरी निकाला और चीनी सैनिकों के ऊपर टूट पड़ा। कई चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारा; और अपने खुकरी से चीनी सैनिकों को लहू लुहान कर दिया। लेकिन अंत में चीनी सैनिको ने उनको पकड़ कर बंदी बना लिया। ताकि अपने फायदे के लिए उनका इस्तेमाल कर सके।
धान सिंह थापा के ऊपर अत्याचार
चीनी सैनिको ने उन्हें बहुत अत्याचार किए। उन्हें भारत माँ के विरुद्ध बयान देने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन उन्होंने बयान देने से इनकार कर दिया।
इधर सभी सोच रहे थे कि मेजर थापा का मौत हो सुका है। लेकिन संघर्ष विराम (Ceasefire) के बाद जब बंदी भारतीयों का लिस्ट निकाला तो उसमें मेजर थापा का भी नाम देखने के बाद ही सभी को मालूम चला कि मेजर थापा जिंदा हैं। बाद में जनेवा संवहन (janeva convection) के तहत उन्हें छोड़ दिया गया । उन्हे 10 मई, 1963 को भारत लाया गया।
इधर सभी सोच रहे थे कि मेजर थापा का मौत हो सुका है। लेकिन संघर्ष विराम (Ceasefire) के बाद जब बंदी भारतीयों का लिस्ट निकाला तो उसमें मेजर थापा का भी नाम देखने के बाद ही सभी को मालूम चला कि मेजर थापा जिंदा हैं। बाद में जनेवा संवहन (janeva convection) के तहत उन्हें छोड़ दिया गया । उन्हे 10 मई, 1963 को भारत लाया गया।
धान सिंह थापा को परमवीर चक्र
इस वीर भारत माँ के संतान को उनके अभूतपूर्व वीरता के लिए परमवीर चक्र से संमानित किया गया था।
धान सिंह थापा का मृतु
मेजर धान सिंह थापा को अपने दक्षता के अनुसार lieutenant Colonel का जिमेदारी मिला। जिसे उन्होंने बरही निष्ठा से पालन किया। अंत मे 5 सेप्टेम्बरा 2005 को इस वीर गोरखा ने अपने भारत माँ की गोद में अपना सर रख कर सदा के लिए सो गया।
अंत मे
20 ऑक्टोबरा से 20 नवंबर 1962 तक चले इस युद्ध मे हम हारे जरूर थे लेकिन उस हार ने हमे कमजोर नहो बल्कि मजबूत बनाया था। उस युद्ध में हमारे पास कोई भी अत्याधुनिक हथियार नही था। विश्वयुद्ध के सयम इस्तेमाल किये गए हथियार और बचे हुए गोला बारूद से ही हमारे वीर सैनिक चीनियों के साथ जंग लड़ रहे थे। सरकार ने बाहर के देशों से भी मदद नही मांगी। इसके बाबजुत भी हमारे देश के सैनिको ने हार नही मानी। मेजर थापा, सूबेदार गुरुंग जैसे वीर सैनिको ने गोला बारूद खत्म होने के बाबजूद भी हार नही माना। वीरता नेपालिओ के खून में ही हैं। हमे गर्व है कि ऐसे वीर गोरखा भारत माँ के संतान हैं। आज भले ही नेपाल एक अलग देश बन सुका हैं, लेकिन नेपाल कभी भी भारत से अलग नही हो सकता। भारत और नेपाल नदी के दो किनारे हैं जिसमे हिन्दू सभ्यता और गोरखा रेजिमेंट एक पुल की तरह हैं। जो दोनो देशो को जोड़ता हैं। यह बताता हैं कि हम हमेशा एक थे, एक है और हमेशा एक रहेंगे। अंत में फिर एक उक्ति को दुवारा दोहराना चाहुंगा,
“अगर कोई मरने से नही डरता या तो वह झूठ बोल रहा हैं या तो वह गोरखा हैं।”
Field Marshal Sam Manekshaw
।। लेख पढ़ने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।।