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योगी । सपनों का समंदर

योगी । सपनों का समंदर
योगी । सपनों का समंदर

ब्रह्माणड का हर एक ग्रह-नक्षत्र एक निर्धारित समय से चलता है। आकाशगंगा, सौरमंडल, ग्रह-नक्षत्र यह सारे एक दुसरे से जुड़े हुए है। कौई भी इससे अछुता नहीं है। कौइ भी अपनी मरजी से नहीं चलता है। सिवाय मनुष्य के। जीसे ब्रह्माण्ड ने किसी खास मकसद से बनाया है। लेकिन वह खास मकसद मनुष्य पुरी तरीके से भुल चुका है। अब सिर्फ एक ही रास्ता रह गया है, उस मकसद कौ पाने के लिये। और वह रास्ता हे आत्मज्ञान। मनुष्य अपने मन के अन्दर के ब्रह्माण्ड कौ समझ कर ही इस भौतिक ब्रह्माण्ड कौ समझ सकता है। लेकिन बड़े अफसौस की बात है कि साधारण मनुष्य अपने अन्दर कि शक्तियोँ को भुल चुका है। लेकिन शिष्य बिक्रम कलिता तुम नहीं भुले हौं। क्योकि तुम एक सच्चे योगी हो। अब सिर्फ तुम्हें ही इस दुनिया कौ मनुष्य के जन्म का असली कारण बातना हौगा। मेरे शिष्य महान योगि क्या तुम यह जिम्मेदारी लेने कौ त्यार हौ। गुरु की यह बाते सुनते ही बिक्रम के आखों से पवित्र आसु बेहने लगे। वह उठ खड़ा हूवा और धीरे धीरे गुरु के नजदीक बढ़ने लगा। उसे अपनी ताकत का अहसास हौने लगा था। जैसे ही वह गुरु के पाव चुने के लिये झुका तभी उसे पिछे से कुछ सुनाई पड़ा। उसने पिछे मुड़ कर देखा लेकिन उसे साफ कुछ दिख नही रहा था। उसने फिर तलवार निकाल लिया और जंग के लिये त्यार हौ गया। वह रोशनी से भी तेज दौरने लगा। वैज्ञानिक सोचते है कि रोशनी से तेज इस दुनिया मे कुछ नहीं। लेकिन उन्हे क्या मालुम यह आब्दुला रोशनी से भी तेज भाग सकता है। आब्दुला यह सोच कर मुह तिरछा कर हँसने लगा। लेकिन तभी उसे याद आता है कि वह तौ गुरु के पास था। यहा केसे पहछा? उसका नाम बिक्रम से आब्दुला केसे हुआ? तभी उसे एक गाना सुनाई पड़ता है। उसके दाहिने तरफ एक आदमी हाथ में तलवार लिये नाचते होये गाना गा रहा है। वह उस आदमी कौ पहचाने कि कोशिस करता है। लेकिन उस आदमी का चेहरा ठिक से नजर नही आता। तब वह अपनी तिलस्मी ताकत से उसके नजदिक जाने कि कौशिश करता है। लेकिन तभी वह आदमी आब्दुला के गरदान कौ पकड़ लेता है। आब्दुला तड़पने लगता है। वह आदमी धिरे धिरे आब्दुला कि तरफ आपना मुंह घुमाता है। आब्दुला देखकर चोक जाता है। यह तो मेनेजार है। औह नो आब्दुला मन ही मन केह उठा अब मे इस दुनीया को केसे बचाउंगा। तभी मेनेजार ने हँसते हुये कहाँ, तुम बरखास्त किये जाते हो। हाँ हाँ.. आब्दुला चोक जाता है। मेनेजार उसके चेहेरे पर एक जोर से मुक्का जड़ देता है। तभी आब्दुला का आख खुल जाता है।  उसे एहसास होता है कि वह सपना देख रहा था। उसका सर थोड़ा भारी लगता है। वह मन ही मन केह उठा, मनहुस मेनेजर सपनें मे भी पीछा नही छोड़ता। आचनाक उसके शरीर मे एक अजीब सा घबराहत होता है। जेसे खुन का बाहाओ उसके मस्तिष्क तक कुछ जानकारी पहचाने कि कौशिश कर रहा हो। जिसे वह भुल चुका है। उसका धड़कन तेज होने लगता है। तभी उसके मस्तिष्क मे हलचल होने लगता है और वह घड़ी कि तरफ देखता है। 10 बज गये। आज तो दफ्तर मे खास मिटिंग है। आज भी अगर मेने लेत किया तो समजो हो गया। यह कह कर आब्दुला बिस्तर से उठ कर ब्रास लेकर एक झतके मे बाथरुम पहुच गया।
जिस इन्सान को बथरुम में आधा घन्टा लगता था आज बह दस मिनिट मे निकाल आय़ा। क्य़ाकि उसे दस बजे के अन्दर दफ्तर पहुचना था। लेकिन दस तो बज सुका था। फिर भी आब्दुला फटाफट कपड़े पहनता हैं। तभी उसकी नजर इन्सान को अपना गुलाम बनाने वाले यन्त्र पर गिरता है। जीसे लोग दुरभाषा यन्त्र या अंग्रजी मे मौबाल फोन भी कहतें हैं। पाँच मीस कौल। वह तुरान्त ही दुरभाषा यन्त्र के उपर उंगलियों को तैराकर यन्त्रको अपने कान के नजदीक लाता है। और दुसरे हाथ से कपड़ा पहनता है।आब्बे कहा है तु। कितना फोन किया उठाता कियोँ नही? सुमित की बाते सुनकर कपड़े का बतन लगाते हुये आब्दुला ने कहा, अब्बे फोन साइलेन्त था।जल्दी दफ्फतर आह वारना मेनेजर तेरेको साइलेन्त कर देगा। फिर बजते रहना एकले। सुमित ने कहा। आब्दुला ने धिरे से पुछा, मेनेजर ने पुछा क्य़ा मेरे बारे मे?” सुमित का जवाब सुनकर तो मानो आब्दुला के उपर निलाचल का पहाड़ गिर पड़ा।पुछा। दस बार पुछ चुका है। तु आखिर है कहा?” कोइ जवाब नही। सुमित ने फिर धीरे से पुछा, भाई मेरे तु घर से तो निकला है ना? याह फिर घर मै ही?में बस निकालने वाला हूँ। आब्दुला का जवाब सुनकर सुमित के होस उर गये, यानी आधे घन्ते से पहले तु दफ्तर नही पहुछेगा। तु आज खतम। सढ़ा हुवा दरवाजे मे लोहे का मोटा ताला लगाते हुये आब्दुला ने कहा, आब्बे कुछ नही होगा। उस लोमड़ी जेसे सकल वाले मेनेजर को बोलना आब्दुला का मोसी आई.सि.इउ मे है। बस वोह पहुछने वाला है। समझा। य़ह कह कर आब्दुला ने दुरभाषा यन्त्र को अपने पेन के जेप मे रख दिय़ा। और अपने दो पाइहो वाले तिब्र बेगी बाहन के उपर बेठ गय़ा।
सुमित से बात करते समय आब्दुला के उपर निलाचल का पहाड़ गिरा था अभी उसके उपर बिजली गिरने वाला था। कियों कि टायर पंक्सर था। अब नया टायर उसके पास था नही। वह समझ नही पा रहा था कि क्य़ा करे। अन्त मे उसने लोगो के मुसिबत के समय भाड़ा दोगुना करने वाले अटो (कुछ इमानदार अटो वालो को छोरके) मे जाने का फेसला किया। बहार निकाल कर देखा तो पहले अटो दिखा नही। थोड़ा दुर आगे गया तो उसे एक अटो दिखा। तभी उसका यन्त्र बज उठा। वह यन्त्र को अपने कानो मे लगा कर अटो बाले के नजदीक गया। अटो वाला मुह मे अजीब चीज लगाकर फुँक रहा था। जीन्दा है कि मर गया? सुमित ने कहा।अब्बे जिन्दा हु। आज घन्ता दिन ही खराब है। मोटरसाइकिल के टायर से किसीने हवा निकाल लिया। आज कल के लोगो के अन्दर इन्तनी नफ्रत भर चुका है। तो तु कोन सा महापुरुष है। जल्दी आ मेनेजर यहा तांडव कर रहा है। और लेत किया ना समज ले अगला कामदेव तु होने वाला है। सुमित कि बाते सुनकर आब्दुला हँसने लगता है। मेनेजर तांडव करके थक गया होगा। तुम जा कर थोड़ा पानी पिलाओ। यह कह कर आब्दुला यन्त्र को रख देता है।
अटो वला पुछता है,कहा जाना है। बस प्रदूषित वातावरण मे एक अदभुत सा मेहक आने लगा। आप चला तो पाएंगेँ ना? कही उलत तो नही ज्यांगे। आब्दुला कि बाते सुनकर अटो वाले ने गर्भ से कहा, आप चिन्ता मत किजिये। जब य़ह बिनोद बड़ो का अटो चलना शुरु होता हे तब भले ही टायर टुट कर गिर जाई लेकिन यह अटो कभी नही गिरेगा। आप सिर्फ यह बताये आपको जाना कहा है। नजदिक कोई अटो दिख नही रहा था। इसिलिए लचार होकर आब्दुला अटो मे बेठ गया। जालुकबारी चलो।...पैसे मिटर के हिसाब से लेगा या... आब्दुला को अपनी बात पुरी करने का मोका भी नही मिला था कि दुसरी तरफ से शब्दों का वान आब्दुला के कानो मे गिरने लगा, नही। 200 लुंगा। यह सुनते ही आब्दुला चोक गया। वह समज गया कि बिनोद मोके का फायदा उठा रहा है। मन ही मन आब्दुला सोचने लगा, सब एक दुसरे को लुतने मे लगे है। सिर्फ मोका चाहिये। ठिक है चलो। बिरक्ति के श्वर मे आब्दुला ने कहा। बनोद ने अटो को आरम्भ किया ओर हवा से भी तेज चलाने लगा। एसा लाग लहा था कि कोई प्रातियगिता चल रहा है जिसमे बिनोद को जितना ही है। यह देख आब्दुला ने धीरे चलाने को कहाँ। लेकिन जब आदमी का विश्वास अन्धविश्वास मे तपदिल हो जाता हे तब उसे कुछ दिखाई और सुनाई नही देता। वह पुरी तरीके से एक भ्रम मे जीता है। एसा ही एक भ्रम बिनोद को था कि अटो के उपर उसकी पुरी पकड़ है। जीतना भी तेज चलाने से उसे कुछ नही होगा। लेकिन कब किसको क्या हो जाई इसका फेसला करने का अधिकार इन्सानों को नही बल्की भगवान को है। इन्सान तो महज एक जरिया है। वेसा ही एक जरिया एक ट्रक के रुप मे उन लोगो के सामने आया। ओर तभी लिओ ने अपनी आखे खोली। एक आदमी दोड़ता हुआ लिओ के पास आता है। वह कुछ अजिब ओह गरीब भाषा मे उसे कुछ कहता है। लिओ को एहसास होता है कि यह तो उसकी खुद की भाषा है। लिओ उसकी बातको सुनने लगता है। वह आदमी बहुत घबराया हुआ है। जेनरल ने तुमहे मोरछा सम्हालने को कहा है। पृथवी ग्रह के सिपाही हमारी मदद के लिये आ रहे है। तुम अभी जाओ। यह सुनते ही लिओ ने आसपास दिखा। चारों तरफ खुन कि नदीयाँ बेह रहा था। हाथियाँरो से विनाश कारि शब्द निकल रहे थे।  वह उठ खड़ा हुआ ओर दोड़ने लगा। लेकिन तभी उसे एक आवाज सुनाई पड़ता है। वह मुड़ कर देखता है। इस बार उसे कुछ धुनला सा दिखाई पड़ता है। वह ध्यान से देखने कि कोशिश करता है। आवाज को सुनने का प्रयास करता है। तभी एक औरत कि आवाज हवा को चिड़ता हुआ उसके कानों मे गिड़ता है। तभी वह बौख्ला जाता है। कियों कि जीस गर्भ मे लिओ ने एक स्वरुप पाया था यह उसकी आवाज थी। लिओ दोड़ने लगा।  लेकिन तभी अचानक लिओ ने एक तेज रोशनी को देखा। जो उसके तरफ बढ़ रहा था। वह समझ गया अब सब खत्म। लेकिन अन्तिम बार के लिय़े वह अपनी माँ को देखना चाहता था। वह दोड़ने लगा। उसने माँ को बुलाया। उसके माँ ने जेसे ही लिओ के तरफ नजरे घुमाई, एक बड़ा सा बिस्फोत हुआ और आदित्य उठ खड़ा हुआ।
आदित्य बेठ कर कुछ सोचने लगा। वह समझ गेया की उसके सपनों के समंदर मे एक सैलाब आया था। तभी उसकी माँ आति है। अपनी भाषा मे कुछ कहती है। क्या फिर से सपना देखा?“ आदित्य सिर हिला कर सहमति देता है। है भगवान। रोज रोज तुमको क्यों एसे सपने आते है। मुझेतो बड़ी चिन्ता होती है। आदित्य मुह धोते हुये माँ को कहता है, आज का सपना थोड़ा अलग था। आज कुछ अदभुत चिजें देखा। लोगो के नजर मे जीवन का अर्थ कुछ दुसरा हो चुका है। सभी लोग दुखी है।बेटे कि बात सुनकर माँ हँसकर कहती है, सुख ओर दुख तो इन्सानो के मन के आन्दर होता है। यह कह कर माँ चली जाती है। आदित्य नदी कि तरफ शोश करने चला जाता है। शोश करते समय वह नदी मे सुरज की परचाई देख कर सोचने लगता है। मेने जो देखा क्या वह भविष्य था या भुत काल। वास्तविक था या काल्पनिक या फिर एक दुसरे ग्रह कि कहानी। जहा मेरे आत्मा का एक अंश रह रहा हैं।  तभी उसे पानी मे एक परचाइ दिखाइ देता है। वह चोक जाता है। यह तो मेरी माँ है। योगी दस बज गये वह तुरुन्त पिचें मुड़ता हैं......


.....भाग 2 
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।। कहानी पढ़ने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद ।।