ISBN Details । ISBN के बारे में अनुखे जानकारी |
ISBN
के बारे में
जिस तरह हर एक जिले का अपना पिन कोड होता है उसी प्रकार हर एक पुस्ताक का भी अपना एक अनूठा अंक होता है। जिसके जरिये उस पुस्तक को खोजा जा सकता हैं और उसके बारे में जानकारी प्राप्त किया जा सकता है। पुस्तक के इसी अनुठे अंक को ISBN कहा जाता है। ISBN एक संक्षिप्त नाम हैं इसका सम्पूर्ण अर्थ है “International Standard Book Number” जिसे हिंदी में “अंतराष्ट्रीय मानक पुस्तक संख्यांक” कहा जाता है। इस ISBN अंक में पुस्तक का सम्पूर्ण विवरण रहता है। पुस्तक कौनसे देश में छपा है, इसका प्रकाशक कौन है, पुस्तक का संस्करण कौन सा है; यह सभी जानकारी ISBN अंक के अंदर मजूद रहता हैं। इसलिये इस अंक प्रणाली को एक अनूठा अंक प्रणाली माना जाता हैं। भारत के साथ ही दुनिया के लगभग १०० (100) में से भी ज्यादा देशो में इसका प्रचालन है।
ISBN
प्रणाली का आरम्भ
आयलैंड के “ट्रिनिटी कॉलेज” के सांख्यिकी अद्यापक (Statistics Professor) “गॉर्डन फॉस्टर” (Gordon Foster) ने १९६५ (1965) में अपने अनुभावों के सहारे स्विन्दन में रहने वाले “डब्ल्यू. ऐच. स्मिथ” जो की एक एक फुटकर (खुद्रा) विक्रेता थे और साथ ही एक मशहूर किताब विक्रेता भी थे; उनके किताबों को सांख्यिक प्रणाली देने की बिधि बनवाई। उन्होंने ९ (9) अंको के प्रणाली बनाई जिसको उन्होंने "Standard Number System" (मानक पुस्तक संख्याक) नाम दिया। इसके बाद ही १९६७ (1967) में ब्रिटैन के “डेविड व्हितकर” ने ISBN पहचान प्रणाली की कल्पना की। उन्हींको ISBN के पिता कहा जाता है। १९७० (1970) में इसे अन्तराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (International Organisation For Standardization) के द्वारा ९ अंक से १० अंक कर दिया गया और अन्तराष्ट्रीय मानक ISO २१०८ (2108) के रूप में प्रकाशित किया।
पहले ISBN केवल उत्तर अमरीका, जापान और यूरोप तक ही सीमित था लेकिन धीरे धीरे इसका प्रचलन विश्व के कई देशों में फैलने लगा। जिसमे हमारे प्यारा भारत भी शामिल हैं।
ISBN प्रणाली
का पंजीकरण और भाग
वर्तामान पुस्तको के लिए ISBN पंजीकरण बहुत ही जरूरी हो सुका है। हर पुस्तक में ISBN अंक अलग रहता हैं। यहां तक की एक ही पुस्तक के अलग अलग भागो का भी (यानी मैगज़ीन, अनुवादन आदि) ISBN अंक अलग होता है। यह अंक सिर्फ ISBN पंजीकृत संस्था दे सकता है, जो उस देश के लोये जिम्मेदार है।
१ जनवारी २००७ (2007) से पहले ISBN में कुल १० अंक होते थे लेकिन उसके बाद जो भी पुस्तक प्रकाशन हुआ उसमे १३ (13) अंक कर दिया गया। ISBN में अंक में कुल चार भाग है। हर भाग को एक हाइफ़न द्वारा अलग किया जाता है।
ISBN
के भाग: -
पहला भाग: समूह या देशो को पहचान करता है। यानी पुस्तक कौन से देश का रहने वाला है वह बताता है।
दुसरा
भाग: प्रकाशक पहचान करता। एक प्रकाशक समूह के अंदर से उस निर्दिष्ट प्रकाशक को पहचान करता है।
तीसरा
भाग: संस्करण पहचान करता जो किसी संस्करण के विशेष संस्करण या शिर्षक को पहचान करता है।
छोथा
भाग: ISBN के अंक में चेक डिजिट एकल अंक है जो ISBN
के सत्यता को प्रमाण करता है। इस अंक के सहारे कंप्यूटर में ISBN की शुद्धता का एक विचार किया जाता है।
यह ISBN अंक पुस्तक के पीछे के अंतिम पृष्ठ यानी अंतिम कवर में रहता हैं।
अंत
मे
ISBN विशेष कर पुस्तकों की पहचान का एक अनोखा प्रणाली है। इसने ना सिर्फ हर एक पुस्तक को पहचान दिया बल्कि हर ISBN कृत पुस्तक को एक निर्दिष्ट पता दिया। जैसे जार गांव का एक निर्दिष्ट Pin Code होता जिसके जरिये हम उस गांव को पहचान सकते है वैसे ही हर ISBN कृत पुस्तक के जरिये हम उस पुस्तक के लेखक आदि के वारेमे जान सकते है।